Friday, February 20, 2009

गीता तत्त्व विज्ञानं

गीता वेदांत है
गीता वेदांत है ....इस बात को समझनें के लिए हमें गीता के निम्न सूत्रों को देखना चाहिए
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2.42,2.43,2.44,2.45,2.52,2.62,3.5,3.27,3.34,5.22,6.2,6.4,6.24,6.27,6.37-6.44,14.5,14.9,14.12,14.16,14.17,16.21,18.19,18.38,
गीता वेदांत है---इस बात के सम्बन्ध में यहाँ कुछ बातोंको दिया जा रहा है जो गीता तत्त्व - विज्ञानं का एक अंश मात्र है आप से प्रार्थना है किआप यहाँ बताई जा रही बातों पर मनन करें
उपर गीता के सातअध्यायों के 22 सूत्र दिए गए हैं जिनसे एक ऐसी उर्जा निकलती है जो आप में इन्द्रियों से बुद्धि तक बहनें वाली उर्जा को रूपांतरित करके आप को परम श्री कृष्ण की तरफ़ मोड़ सकते हैं
गीता एक परम चुम्बक है जो बिना बताये अपनी तरफ़ ऐसे खिचता है किपता भी नहीं चलता
वेदों में स्वर्ग प्राप्ति को परम माना गया है और भोग तथा भोग साधनों कीप्रसंशा की गयी है ....यहाँ देखिये गीता सूत्र 6.37--6.44 तकगीता बताता है----ऐसे योगी जिन्का योग खंडित हो जाता है वे कुछ समय स्वर्ग में रह कर भोग से तृप्त होते हैं और फ़िर मृत्यु लोक में जन्म ले कर अपनी साधना पूरी करते हैं गीता स्पष्ट रूप से कहता है......दो प्रकार के योगी होते हैं --एक ऐसे योगी हैं जो वैराग्य अवस्था प्राप्त करनें के बाद शरीर छोड़ते हैं जब उनकी साधना पूरी तरह पक गयी होती है,वे स्वर्ग न जाकर सीधे किसी उत्तम-कुल में जन्म लेकर वैराग्य से आगे की साधना - यात्रा करते हैंदूसरे प्रकार के योगी वे हैं जो वैराग्य प्राप्ति से पहले और साधना खंडित होनें पर यदि उनका शरीर छुट जाता है तब ऐसे योगी स्वयं को स्वर्ग में अतृप्त कामनाओं से तृप्त करके जन्म लेते हैं तथा प्रारम्भ से साधना शुरू करते हैंगीता कहता है...गीता का स्वाद जिनको मिलजाता है उनका वेदों से अधिक सम्बन्ध नहीं रह पता वेदों की सीमा गुणों तक
सीमित है और गीता गुणों से उस पार की यात्रा कराकर परम गति तक पहुंचाता है
सात्विक ,राजस तथा तामस तीन गुणों से मनुष्य का जीवन नियंत्रित होता है
गुणों की चर्चा आगे चलकर विस्तार से होगी लेकिन यहाँ इतना जानना जरुरी है की तीन गुणों से आत्मा
स्थूल शरीर में होता हैअब आप सोचें...गीता एक तरफ़ गुणों के बंधन से मुक्त करना चाहता है और दूसरी तरफ़ यह भी कहता है की आत्मा को शरीर में गुणों का बंधन रोकता है....अर्थात गुणों से मुक्त योगी किसी भी समय अपना शरीर छोड़ सकता है.......इस सम्बन्ध में परमहंश रामकृष्ण कहते हैं.......मायामुक्त योगी तीन सप्ताह से अधिक समय तक शरीर के साथ नहीं रह सकता क्रमशः अगले अंक में

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