Tuesday, February 24, 2009

मैं और तूं

मैं तूं का मार्ग है

मैं में तूं को खोजना --- गीता-तत्त्व ज्ञान है

मैं में बश मैं ही मैं होता है..........और--

तूं में मैं भी तूं में घुल जाता है

तूं में प्रीतिका आलम होता है......और--

मैं में गरजता अंहकार

मैं का जीवन नरक है...............और---

तूं से भरा जीवन ............स्वर्ग

मैं में मनुष्य पशु बन जाता है.....और

तूं से भरा मानव परमतुल्य

मैं से तूं में पहुचना ही योग है

योग में मैं प्रीति में बदल जाता है

मैं का कार्य- क्षेत्र मन-बुद्धि तक सीमित है

तूं ह्रदय में धड़कता है

गीता कहता है................

ब्रह्म की अनुभूति मन-बुद्धि से परे की है और....

परमात्मा का स्थान ह्रदय है

भोगी परमात्मा को संसार में खोजता है...और

योगी परमात्मा की धड़कन अपनें ह्रदय में सुनता है

भोगी परमात्मा को अपनें भोग के लिए खोजता है

योगी बिना खोजे उसे अपनें

ह्रदय में मह्शूश करता है...गीता 13.२४

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