Tuesday, February 17, 2009

मनुष्य की दशा

मनुष्य जीवों का सम्राट हो क़रभी क्यों अतृप्त है?
मनुष्य तीन चीजों से डरता है ........प्रेम,परमात्मा और मृत्यु मनुष्य भय के साथ इन तीनों की खोज में
अपना जीवन अतृप्त ता में कब और कैसे पूरा कर लेता है उसे भनक भी नहीं मिल पातीमनुष्य प्रेम केलिए
संम्बंध बंनाताहै,परमात्मा केलिए मन्दिर-निर्माण करता है और मृत्यु पर विजय प्राप्त करनें केलिए
विज्ञानं विकसित कर रहा हैअब आप सोचें.......क्या इन तीन से हम तृप्त हैं?.....उत्तर है -नहीं ...ऐसा क्यों ?
मनुष्य अन्य जीवों से भिन्न है क्योंकि मनुष्य के जीवन में भोग-भगवान दो केन्द्र हैं एवं अन्य
जीवों का जीवन केवल भोग केंद्रित होता है
मनुष्य जब परमात्मा की तरफ़ मुड़ता है तब भोग उसे अपनी तरफ़ खीच लेता है और जब भोग
में उतरता है तब परमात्मा की स्मृति उसे अतृप्त करती है....यह दो ध्रुवी समीकरण में उलझा
मनुष्य अतृप्ति के फलस्वरूप पैदा होता है और अतृप्ति में दम तोड़ता है
तंत्र कहता है ...बिषय बदलनें से वासना को नहीं समझा जा सकता-वासना को समझनें
के लिए स्वयं को समझना जरुरी हैइस सम्बन्ध में गीता कहता है......भोग एवं भगवान को एक
साथ एक समयमें एक बुद्धि में नहीं रखा जा सकताएक बात और आप समझलें ...भोगी योगी को
नहीं समझ सकता,योगी को योगी समझता हैभोगी निराकार में भी साकार देखता है और योगी
साकार में निराकार को देखकर धन्य हो जाता हैगीता-मोटी वह माद्यम है जो आप को साकार
भगवद - गीता में निराकार गीता से मिलानें का कम करता है.....ॐ.....क्रमशः........

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