नानकजी कहते हैं---नानक दुखिया सब संसार और महानमनो वैज्ञानिक जुंगका कहना है--मनुष्य दुःख को कभी
छोड़ना नही चाहता।दुःख-सागर में होश की किस्ती से सफ़र करनें वाला जो अपनें जीवन का अंत ही देखता रहता
है वह उस अंत में अनंत की अनुभूति पा सकता है।ओस्कर वाइल्ड कहते हैं---there are two misfotunes in one,s life--one is to get and other is not to get----यहाँ पहली स्थिति को हम दुःख कहते हैं और दूसरी स्थिति को सुख कहा जाता है। दुःख-दर्द और सुख-आनंद की एक कहानी यहाँ दी जा रही है जो आप को सत्य की
राह दिखा सकती है।
एक गाव में एक साधारण आदमी था,उसके परिवार में तीन लोग थे --एक वह,एक उसकी पत्नी और एक
उनकी प्यारी सी बेटी थी। एक दिन पत्नी का स्वर्ग-बासहो गया,अब वह आदमी अपनी बेटी के साथ रहनें लगा और
अपना पूरा समय बेटी पर गुजारनेंलगा। धीरे-धीरे दो वर्ष ही गुजर पाए थे की बेटी बीमार पड़ गयी। उस आदमी नें
बेदी के इलाज में अपना सब कुछ खो दिया लेकिन बेटी ठीक न हो पायी।बेटी दिन प्रति दिन सिमतनेंलगी थी और
एक दिन दम तोड़ गयी। अब आप सोच सकते हैं की उस आदमी पर क्या गुजर रही होगी? वह आदमी बिचारा
पागल सा हो गया और गाँव-गाँव भटकनें लगा। एक दिन की बात है--वह एक गाँव के बाहर एक पेंड के नीचे बैठ
कर आराम करते-करते सो गया और एक स्वप्न देखा की वह स्वर्ग में है। सर्ग में बाल देवों की एक अंत हीन पंक्ति
उसकी ओर आरही है,सभी बाल देवों के हाँथ में जलती मोमबत्तियां हैं लेकिन उसकी बेटी एक बुझी हुयी मोम बत्ती
लेकर क़तर में चल रही है, वह दौड़ा दौड़ा बेटी के पास गया और पूछा ---बेटी तेरी मोमबत्ती क्यों बुझी हुयी है?
बेटी कहती है--पिता जी क्या करू हमारे साथी बार-बार इसको जलाते हैं लेकिन आप के आशु इसे बार-बार बुझा
देते हैं। इतनें में उसकी नींद टूट जाती है और वह उस दिन से खुश रहनें लगता है।
दर्द में होश की एक बूंद परमानन्द का सागर बन सकती है
======ॐ =======
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