खजुराहो की मूर्तियों के तन से कामऔर मनसे राम टपकता है----क्यों?
खजुराहो मंदिरों में बाहर दीवारों पर कामुक मूर्तियाँ हैं और अंदर गर्भ-गृह रिक्त है---क्यों?
मध्य- भारत चंदेला चंद्र-मुखी राजपूतों के अधीन सन ९०० से १६०० इस्बी तक था। खजुराहो उनकी राजधानी थी।
खजुराहो के मंदिरों का निर्माण चंदेला राजाओं द्वारा सन १२०० के आस-पास किया गया है। राजपूत दू प्रकार के होते हैं--चंद्र-मुखी और सूर्य-मुखी। सूर्य मुखी राजाओं में श्री राम आते हैं जिनकी चर्चा हम आगे करेंगे। खजुराहो मंदिरों को आपनें देखा है या नहीं --यह बात आप जानते होंगे लिकिन यहाँ हम आप को इन मंदिरों से मिलाने का प्रयत्न कर रहे हैं। आप आगे चलनें के पहले उपनिषद की इन पंक्तियों को देख लें-----
Health,a light body,freedom from cravings, a gloving skin, sonorous voice, fragrance of body, these signs indicate the progress in the practice of meditational techniques.
गीता-सूत्र ७.११ में परम श्री कृष्ण कहते हैं--शास्त्रानुकूल काम, मैं हूँ --अब आप इस बात पर सोंचें की ऐसा काम क्या हो सकता है? आगे हम अपनें ब्लॉग के मध्यम से आप को तंत्र-साधना के बारे में भी बताएँगे जहाँ शास्त्रानुकूल काम को आप अच्छी तरह समझ सकते हैं। वासनायुक्त काम संसार से जोड़ता है और वासना रहित काम ब्रह्म से जोड़ता है। खजुराहो-मंदिरों की दीवारों की कामुक-मूर्तियाँ संसार की ओर इशारा करती हैं और गर्भ-गृह की रिक्तता उस परम शुन्यता की ओर इशारा करती है जिसमें ब्रह्म की अनुभूति मिलती है।
खजुराहो के मन्दिर अगम्य जंगल में बनाये गए हैं जहाँ उस समय पहुँचना इतना आसननहीं रहा होगा जितना आसान आज है। चंदेला लोग तंत्र-साधक थे। तंत्र में काम-उर्जा को निर्विकार बनाया जाता है जिससे
निर्विकार उर्जा से सत्य को समझा जा सके।
विकार निर्विकार का मध्यम है
और
काम राम को पानें का माध्यम है
=====ॐ=====
यह सूत्र तंत्र- साधना का परम सूत्र है
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