मन्दिर-सन्दर्भ में कुछ बातोंको हमनें पहले अंक में देखा अब कुछ और बातों को देखते हैं।
१- सिंध घाटी की सभ्यता[७०००--१००० ईशा पूर्ब] की खुदाइयों में भी पूजा-गृहों को पाया गया है।
२- यूनान में डेल्फी के ओराकलकी स्थापना ईशा पूर्ब ८०० वर्ष मानाजाता है जो एक मन्दिर था और जहाँ से
भविष्य में झाका जाता था।
३- मिस्रकी सभ्यता को लोग वहाँ के फराह राजाओं के कारन जानते हैं जो सूर्य के उपासक थे और पिरामिड्स की
रचनाएँ करवाया। यह समय था इशापूर्ब ३२००--३१ वर्ष।
४- इशापूर्ब में जेरुसलेम के मन्दिर में अनेक मूर्तियाँ थी जो नित्य पूजी जाती थी।
५- २००० ईशापूर्ब से पारसी लोग सूर्य-देवता की पूजा कर रहें हैं।
६- इस्टर द्वीप में २० फीट से भी ऊँची-ऊँची पत्थर की विशाल मूर्तियों का रहस्य आज भी रहस्य ही है। यहाँ सभी
मूर्तियाँ समुन्द्र की ओरमुह करके खडी हैं, ग्राम-देवताओं की तरह।
७- ईशा पूर्ब २०० से इशाबाद २५० वर्ष में बनी अजंता की कृतियाँ भी क्या मन्दिर नही हैं?
८- चीन के हुनान प्रदेश में ईशा पूर्ब ६८ वर्ष का बौध मन्दिर है जहाँ भारत के बौध भिक्षुक पहली बार चीन धर्म
प्रचार के लिए पहुंचे थे।
९- ८४९ ईशा बाद मेमार में पागन में पहाडों को कट कर बौध मंदिरों के शहर का निर्माण किया गया था जिसको
मंगोल के लोग बरबाद किया लेकिन अवशेष आज भी पड़े हैं।
१०- चंदेला राजाओं द्वारा सन १२०० के आस-पास तंत्र - साधना के लिए खजुराहो के मंदिरों का निर्माण कराया
गया था जो आज पर्यटन का केन्द्र है।
तंत्र-विज्ञानं के जन्म दाता शिव हैं,शिव को शून्य का आविष्कारक भी माना जाता है, प्राचीनतम
मंदिरों का सीधा सम्बन्ध शिव- लिंगम से है,शिव को तो लोगों ने पूजा यहाँ तक की आदि शंकाराचार्य को शिव का
अवतार भी माना गया लेकिन उनके विज्ञानं को लोगों नें अपनें पूजा से दबा दिया क्योंकि इसका सीधा सम्बन्ध
काम[sex] से है। गीता में भी परम श्री कृष्ण के १३ सूत्र हैं जिनमें काम-नियंत्रण की ध्यान बिधि भी दी गयी है।
परम श्री कृष्ण सीधी बात करते हैं की मनुष्य पाप-कर्म काम के सम्मोहन में करता है।
मन्दिर मनुष्य के मन की उपज है जहाँ यह विश्राम करता है।
मन्दिर परिषर के बाहर भोग-संसार की पकड़ मजबूत होती है और अंदर परम-शून्यता का खिचाव गहरा होता है।
======ॐ =======
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