तुलसी दास ४२ साल की उम्र में रामचरित मानस लिखना प्रारम्भ किया
रामचरित मानस दो वर्ष सात महीनों में पूरा हुआ
रामचरित मानस की मूल-प्रति आज भी काशी नरेश के पास है
तुलसीदास राम के परम-प्रीतिमें डूबे भक्त थे लेकिन राम-मन्दिर की जगह मस्जिद देखनें के बाद क्या
उनकी आखों से प्रीति की आंशूकी दो बूंदे भी न निकली होंगी ?
बाबरी-मस्जिद बननेंके ४-५ वर्ष बाद तुलसी पैदा हुए थे क्या वे अपनें बचपन में राम-मन्दिर और बाबरी मस्जिद
की कहानी नहीं सुनी होगी ?
तुलसीदास बाबरी मस्जिद के सामनें बैठ कर रामचरित मानस की रचना प्रारंभ किया लेकिन ध्यान में उन्हें
कभी भी राम मन्दिर न दिखा --यह कैसे सम्भव हो सकता है ? यदि दिखा होता तो वे कुछ तो लिखे होते ।
बाबरी मस्जिद के ठीक २८ साल बाद अकबर गद्दी पर बैठे और उनके शाशन काल में अनेक हिंदू लोग ऊँचे-ऊँचे
पदों पर थे लेकिन उनमें सी किसी एक नें भी राम मन्दिर की बात अकबर के सामनें नही रखा--क्या कारन था ?
रामचरित मानस अकबर के गद्दी पर बैठनें के २० वर्ष बाद लोगों को उपलब्ध हो गया था , अकबर हिंदू-मुसलमान
सब को एक नजर से देखते भी थे लेकिन क्या कारण था की लोग राम-मन्दिर की बात उनके सामनें नहीं लाये ?
ऐसी कौनसी घटना घटी की बाबरी मस्जिद बनने के ४६४ वर्ष बाद लोगों में ऐसी उर्जा आगई की लोग उसको
तोड़ डाले ?बाबरी मस्जिद की खुदाई की गई और वहां १०वी शताब्दी में बने मन्दिर के अवशेष मिले , वह मन्दिर
किनका था--जैनियो का , बुद्धों का या फ़िर हिन्दुओं का ?---आप इस बात पर सोचना ।
अयोध्या का सम्बन्ध थाईलैंड एवं इंडोनेशिया से भी है --थाईलैंड में Ayurthhaya city तथा इंडोनेशिया में
Yogyakarta शहर की स्थापना अयोध्या नाम के ऊपर की गई है । इतिहास में अयोध्या का क्षेत्रफल २५० वर्ग
किलो मीटर में फैला माना गया है ।
तुलसीदास रामचरित मानस की रचना का प्रारम्भ तो अयोध्या में किया लेकिन कुछ दिन बाद वे कशी जा कर
अपनी रचना को पूरा किया --तुलसीदास क्यों अयोध्याको छोडा ?
तुलसीदास सरयू नद्दी में दुबकी भी ली होगी क्या सरयू के पानी में उनको राम की खुशबू नही मिली की वे
अयोध्या से काशी चले गए ?
६०० ईशापूर्व में अयोध्या एक ब्यापारिक केन्द्र था , यहाँ दूर-दूर से लोग आते थे और ऐसा भी कहा जाता है की
बुद्ध यहाँ प्रायः आया करते थे । 500 AD Chinese Fa-Hein यहाँ आए थे और यहाँ अनेक बुद्ध - मठों के
होनें की बात को इन्हों नें अपनें लेख में लिखा भी है पुनः दो सौ वर्ष बाद एक और चीनी जिज्ञाशु Xuang Zhang
भी आए जो अयोध्या में अनेक हिदू मंदिरों के होनें की बात लिखी है अर्थात २०० वर्ष में यहाँ कुछ धार्मिक
परिवर्तन अवश्य हुआ होगा ।
भारत में आदि शंकराचार्य के बाद ८-१० वी शताब्दी के मध्य काफी परिवर्तन हुआ भारत से मिमांश, शांख्य ,
जैन-दर्शन तथा बोध-दर्शन लुप्त होनें लगे और उनकी जगह पर भक्ति -बाद की लहर उठी --लोग मंदिरों में ढोल
पिटनें लगे बुद्धि पर जोर देनें की बाद समाप्त हो गई और इसका फ़ायदा उठाया अफगान के लुटेरों नें --भारत
अंततः गुलाम हो गया। यदि आप पश्चिम एवं भारत के इशापुर्ब दर्शनों को एक साथ देखे तो आप को दोनों में कोई
विशेष अन्तर नही मिलेगा --पश्चिम में अरिस्तोतल का तर्क -दर्शन था तो भारत में मीमांस एवं शंख्या का
गहरा तर्क-दर्शन था जिससे एक गहरा विज्ञान निकल सकता था लेकिन ऐसा हुआ नही । पश्चिम में धर्म-धरती
को फाड़ कर विज्ञान निकला है और भारत की धर्म-धरती इतनी सकत थी की इसके अंदर छिपा विज्ञानं का बीज कभी अंकुरित न हो पाया ।
परमात्मा करे वह ऋषि-मुनिओं द्वारा तैयार किया गया बीज अब आगे भविष्य में अंकुरित हो ।
=====ॐ=====
Monday, April 27, 2009
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