भारत के ऋषि इतिहास बनानें के पक्ष में रूचि नहीं रखते थे , मात्र उस राह की ओर इशारा किया जिस राहपर वे स्वयं चलते थे ।
आज कोई ठोस प्रमाण उपलब्भ नहीं जिस के आधार पर यह कहा जा सके की ----------
०० वेदों की रचना कब हुयी ?
०० वेदों के रचनाकार कौन थे ?
०० वेदों की रचना में कितना समय लगा ?
क्या सूर्य जब जाता है तब कोई छाया छोड़ जाता है ? नहीं छोड़ता वैसे ही परम तुल्यब्यक्ति अपनी छाया नहीं
छोड़ता । हमारे आदि ऋषि सत्य से सत्य में जीते थे , जिनका भूत एवं भविष्य उनके वर्तमान में ही होते थे ।
वेदों की रचना जब हुयी तब उस काल के लोग टाइम-स्पेस में रहते हुए भी टाइम-स्पेस से मानशिकरूप से
प्रभावित नहीं थे । धीरे - धीरे समय गुजरा और वेद् उनलोगों के पास आगये जो लोग बुद्धि केंद्रित थे ।
बुद्धि-केंद्रित लोग वेदों को अपनें-अपनें नजरिये से देखना प्रारम्भ कर दिया और वेद् अपनी मूल आकृत को
खोनें लगे ।
महाभारत का समय 5561 bce - 800 bce के मध्य मानी जाती है , भारत के प्रशिद्ध पुरातत्व ग्यानी श्री
बी बी लाल इसको 836 bce मानते हैं । गीता में तीन वेदों की बात कही गयी है जबकि आज चार वेद् हैं --यह
चौथा वेद् कब और क्यों आया....यह बात आप के लिए है , आप इस पर सोच सकते हैं ।
सत-युग का मानव त्रेता-युग के मानव से भिन्न था , द्वापर का मानव त्रेता-युग के मानव से भिन्न था और
कलि-युग का मानव द्वापर के मानव से भिन्न है --यह परिवर्तन अपनें साथ सब में परिवर्तन लारहा है , इस
परिवर्तन चक्र में मूल को खोजना इतना आसान नहीं ।
आज जो वेद् हैं उनमे प्रारम्भिक वेदों को खोजना ही वेद्-साधना है ।
======ॐ=======
Thursday, April 30, 2009
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