Monday, April 6, 2009

दर्द का रिश्ता--३

कभी आप अकेले में बैठ कर क्या अपनें अंदर छिपे दर्द को मह्शूश करनें की कोशिश की है? यदि नही तो अब कोशिश करके देखें।
कभी अकेले में आँख से टपकते आशुओं के साथ यात्रा किया है? यदि नही तो करके देखिये। यदि इन दो का अनुभव
आप को है तो आप ----गीता के भक्त हैं, आप ज्ञानी हैं जिसको क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का बोध होता है,आप परमात्मा से भरे हुए स्थिर प्रज्ञा योगी हैं और आप इस भोग-संसार में कमलवत रह रहे होंगे। आप चलते- फिरते गीता हैं,आप जहाँ
भी रहेंगे आप के चारोंतरफ़ परम श्री कृष्ण की उर्जा का माध्यम होगा जो जागनें के इक्षुक लोगों को परम-उर्जा से
भरता होगा और आप साकार रूप में निराकार परमात्मा तुल्य होंगे।
आज का युग विज्ञानं का युग है जो सब के चहरे पर मुस्कान लानें का पूरा प्रबंध कर रहा है लेकिन क्या लोग प्रशन्न हैं? मनों- विज्ञानं का एक सिद्धांत है---जो हम भुलानें की कोशिश करते हैं उसे हम भूल नही पाते
हम जितना प्रयत्न भुलानें के लिए करते हैं वह और गहरा होता चला जाता है। दर्द को प्रकट करते है हमारेआंशू
दर्द जब अपनी सीमा पर पहुंचता है तब वह आंशू बन कर टपकता है। आंशू को पकड़ कर यदि होश पूर्बक उलटी
दिशा में यात्रा की जाए तो दर्द के केन्द्र पर पंहुचा जा सकता है जो दर्द नही है। यदि दर्द के केन्द्र पर पूरी उर्जा केंद्रित
की जाए तो यह पता चल जाता है की ये भावभरे आंशू भावातीत से आते हैं और भावातीत परमात्मा है।
गीता-सूत्र 7.12,7.13 कहते हैं----सभी भाव परमात्मा से उठते हैं लेकिन परमात्मा भावातीत है।
क्या आप आंशू के माद्यम से परमात्मा की यात्रा करना चाहते हैं? यदि हाँ तो अपनें आंशुओं से मैत्री स्थापित करें।
========ॐ========

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