इतिहास कार गीता को 5561 b c --800 b c के मध्य की उपज बताते हैं और हम भारतीय तब से आज तक आत्मा को अपनें-अपनें अधरों पर चिपका रखे हैं जिस को न तो अंदर ह्रदय में पहुचनें देते और न ही बाहर निकलनेंदेते बात क्या है ?---ज़रा सोचिये ।
भारत का बच्चा - बच्चा जानता है की आत्मा अमर है जो शरीर के बाद भी जिंदा रहता है लेकिन अकेले अंधेरे में
जानें में घबडाता है ---हमेआत्मा का ज्ञान क्यों नहीं बदल पाया ?
आत्मा को गीता में समझनें के लिए आप इन श्लोकों को देखें --------
२.१९---२.३०
३.४
८.४
१०.२०
१३.१६ १३.२२ १३.२९ १३.३२ १३.३३
१४.५
१५.७ १५.८
१८.६१
आठ अध्यायों के २४ सूत्र यहाँ आप केलिए दिए गए जिनको आप गीता में देख सकते हैं ।
गीता में परम श्री कृष्ण आत्मा को कुछ इस प्रकार से ब्यक्त किया है-------
आत्मा शरीर में द्रष्टा है , निर्विकार है, अपरिवर्तनीय है , समयातीत है , अप्रभावित है , अब्य्य है , आत्मा परमात्मा
है , आत्मा को तीन गुन शरीर में रोक कर रह्कते हैं और आत्मा जब शरीर छोड़ कर जाता है तब इसके साथ
मन-इन्द्रियाँ भी होती हैं ।
परम श्री कृष्ण कहते हैं की आत्मा अचिन्त्य है अर्थात जिसके बारे में सोचना सम्भव नहीं पर स्वयं गीता में सबसे
पहले आत्मा पर ही बोलते हैं ....ऐसा क्यों ?
गीता का अर्जुन मोह ग्रसित है , मोह ग्रसित ब्यक्ति में अज्ञान-भरा होता है , जिसकी बुद्धि संदेह में उलझी होती है --
और ऐसे ब्यक्ति से परम श्री कृष्ण यह उम्मीद करते हैं की वह आत्मा को समझ कर उनकी बात को स्वीकार कर
लेगा.....क्या ऐसा सम्भव है ?
गीता सूत्र ४.२८ कहता है----योग सिद्धि पर ज्ञान के माध्यम से आत्मा का बोध होता है ,गीता सूत्र १३.२ कहाता है
---ज्ञान वह जिस से क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का बोध हो और गीता सूत्र २.४२--२.४४ तक एवं सूत्र १२.३, १२.४ कहते हैं----
परमात्मा की अनुभूति मन-बुद्धि से परे की अनुभूति है तथा एक साथ एक बुद्धि में भोग -भगवान् को रखना
सम्भव नहीं --अब आप सोचें की आत्मा को कैसे जाना जा सकता है....वह कौन सा माध्यम है जो परमात्मा-
आत्मा मय कर सकता है ?
आत्मा एक सहारा है --हमारे शरीर में प्राण के रूप में, जो रह-रह कर हमे अपनी ओर खिचता रहता है
=====ॐ=====
Tuesday, April 21, 2009
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