गीता का परम धाम मां की गोदी है जिसको बुद्धनिर्वाण,महाबीर निर्ग्रन्थ कहते हैं। हमें निर्वाण-निर्ग्रन्थ का अनुभव तो नही लेकिन मां की गोदी को कौन भूल सकता है? गीता कहता है ---गुनातीत,समत्व-योगी बाल स्वभाव में परमात्मा से परमात्मा में खेलता रहता है और संसार को एक द्रष्टा के रूप में देखता रहता है। भी गीता यह कहता है---समत्व-योगी सदियों के बाद आता है जो हमारे रुख को परम की ऑरकरना चाहता है। हम सतपुरूष के साथ रहते है,उनके पैर से पैर मिलाकरचलते भी है लेकिन कुछ दुरी तक ही। हम सत पुरूष के साथ
रह कर उनके चलनें,उठानें,बैठनें तथा बोलनें को सीखते हैं और जब सीखजाते हैं तब उनको समाप्त करनें का प्रबंध
करनें लगते हैं। यीशु को सूली पर किसने लटकाया , सुकरात को जहर किसने दिया , दया नन्द सरस्वती को किसने जहर दिया ---उनके ही समर्थकोंनें । इतिहास बताता है की हमनें सभीं पवित्र लोगों को मारा एक मां को
छोड़ कर लेकिन अब क्या हो रहा है, आप नित-प्रतिदिन समाचार पत्रों में पढ़ रहे हैं। आज मां के बीज को गर्भ मेंही समाप्त किया जा रहा है ----यह हम लोग क्या कर रहे हैं? मां को अपने बच्चे से सम्पर्क्के लिए किसी साधन की जरुरत नही, मां हजारों मील दूर रह कर भी अपनें बच्चे की सभीं संवेदनाओं को प्राप्त करती रहती है।
मां तो आत्मा है वह कैसे बदल सकती है तो फ़िर क्या हम भोग में इतनें डूब चुके हैं की मां भी हमारे लिए एक
भोग-तत्त्व बन गयी है।
मां मां है और मां ही रहेगी हमें स्वयं के बारे में सोचना है।
=====ॐ=====
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