Wednesday, April 15, 2009

मन्दिर-९[मन्दिर और ध्वनी]

मन्दिर एक माध्यम है
मन्दिर योग-सिद्धि प्राप्त योगिओं की देन है जिस के माध्यम से वे अपनीं मन-बुद्धि से परे की अनुभूति को ब्यक्त किया है।
आइये इस सन्दर्भ में गीता के कुछ सूत्रों को देखते हैं-------
सूत्र- ७.८
आकाश में शब्द और वेदों में ओंकार मै हूँ----परम श्री कृष्ण
सूत्र- ९.१७
रिग-वेद, साम-वेद , यजुर्वेद तथा ओंकार मै हूँ---परम श्री कृष्ण
सूत्र-१०.२५
ॐ तथा जप-यज्ञ मै हूँ --------परम श्री कृष्ण
सूत्र- १०.३५
ब्रिहत्साम तथा गायत्री मै हूँ---परम श्री कृष्ण
अब हम इन सन्दर्भों को आधार बना कर मन्दिर को देखते हैं .........
१- अजन्ता में बुद्ध- प्रार्थना गृह है जिसके दीवारों पर चोट करनें पर तबले की धुन निकलती है ।
२- बिशुद्धा नन्द काशी में एक मन्दिर के अंदर मंत्रों के उच्चारण से कुछ गिलहरिओं को मृत्यु दिया था
जिसकी पुष्टि ब्रिटिश-डाक्टरों नें की थी और पुनः मंत्रो के उच्चारण से उनको जिंदा भी किया था ।
एक बात आप गंभीरता से सोचना--पहले मन्दिर बस्तिओं से दूर घने जंगलों में बनाये जाते थे जहाँ सब की पहुँच
सम्भव नहीं थी और अब लोग अपनें-अपनें घरों में मन्दिर बना रहे हैं --इसके पीछे क्या कारन हो सकता है?
पहले मंदिरों को साधना के अनुसार बनाया जाता था--जैसे यदि तंत्र-साधना करनी हो तो मन्दिर के बाहरी
दीवारों पर कामुक मूर्तियाँ बनायी जाती थी और गर्भ-गृह रिक्त होता था , ध्वनी आधारित मंदिरों की दीवारें
कुछ ऐसी होती थी जो ध्वनी को रूपांतरित करनें की क्षमता रखती थी ।
मन्दिर के गर्भ-गृह में बैठ कर मंत्रों का जब जाप किया जाता है तब उस जाप से जो ध्वनी गूंजती है वह दीवारों
से टकरा कर एक अलग ध्वनी उत्पन्न करती है जिस में मनुष्य के अंदर बहनें वाली ऊर्जा को रूपांतरित
करनें की क्षमता होती है ।
गायत्री और ब्रिह्त्साम छंद में ऐसी क्या बात है की इनको परमात्मा का दर्जा दिया गया है ?
मंत्र दो प्रकार के होते हैं---एक मंत्र ऐसे होते हैं जिनके जाप करनें से जाप करता स्वयं को रूपांतरित करता है और
दूसरे ऐसे मंत्र होते हैं जिनको सुनकर रूपांतरित होनें की संभावना अधिक होती है- जिनको श्रुति-छंद कहते हैं ।
======ॐ======

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