Friday, May 14, 2010

गीता गुण रहस्य -- भाग - 03


प्रभु - गुण सम्बन्ध

यहाँ हम गीता के छः श्लोकों को देखनें जा रहे हैं -------
[क] श्लोक - 2.16 ..... सत भावातीत है
[ख] श्लोक - 18.40 ... कोई ऐसा सत नहीं जिस पर असत की छाया न हो
[ग] श्लोक -7.12 - 7.13 .... तीन गुण एवं उनके भाव प्रभु से हैं पर प्रभु उन गुणों एवं भावों में नहीं होता
[घ] श्लोक - 7.14 - 7.15 .... तीन गुणों का एक माध्यम है जिसको माया कहते हैं ।
माया मनुष्य के मन - बुद्धि को प्रभु की ओर घूमनें नहीं देती । माया से अप्रभावित
ब्यक्ति , योगी होता है ।

बीसवी सताब्दी के प्रारम्भ में जब आइन्स्टाइन अपने सापेक्ष सिद्धांत को विज्ञान जगत
के सामनें रखा तो उस समय उनके सिद्धांतों में गणित के समीकरण न थे ,
गणित का समर्थन उन सिद्धांतों को मिला लगभग एक दसक बाद -
Hermann Minikowski संन 1909 में आइन्स्टाइन के सिद्धांत को गणित का
जामा पहनाया और अब Particle Scientist एवं Quantum Mechnics के वैज्ञानिक
गीता एवं उपनिसदों के सिद्धांतों को गणित में ढाल रहे हैं । मैं तो नहीं कर सकता लेकीन उम्मीद रखता हूँ की आनें वाले दिनों में गीता से विज्ञान अवश्य निकाला जाएगा ।

गीता का सूक्ष्म विज्ञान कहता है -----
प्रभु से तीन गुण हैं , तीन गुणों के अपनें - अपनें तत्त्व हैं , तीन गुण अपने - अपने भाव मनुष्य के अन्दर पैदा करते हैं और उन भावों में आकर मनुष्य वैसे - वैसे कर्म करता है । कर्म का परिणाम सुख - दुःख का कारण है ।
माया तीन गुणों का माध्यम अपने अपरा- परा प्रकृतियों से जगत को चलाती है । वह जो माया से प्रभावित है , प्रभु मय हो नहीं सकता अर्थात माया प्रभु की ओर रुख नहीं करनें देती और माया मुक्त ब्यक्ति , योगी होता है ।

==== ॐ =====

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