Sunday, May 23, 2010

गीता गुण रहस्य - भाग - 13


गुण एवं मनुष्य सम्बन्ध

यहाँ हम गीता के तीन श्लोकों को देखेंगे जो इस प्रकार से हैं .........
गीता सूत्र - 13.19 ...... प्रकृति एवं पुरुष अज हैं । प्रकृति से तीन गुणों के तत्त्व हैं जैसे राग , काम , कामना , क्रोध लोभ , मोह , भय एवं आलस्य आदि ।
गीता सूत्र - 14.5 ...... तीन गुण आत्मा को देह में रोक कर रखते हैं ।
गीता सूत्र - 14.10 .... मनुष्य के अन्दर तीन गुणों का हर समय बदलते रहनें वाला एक
समीकरण होता है जो
मनुष्य के स्वभाव को बनाता है ।

अब आप गीता के ऊपर दिए गए तीन सूत्रों के आधार पर मनुष्य एवं गुणों से सबंध को समझ सकते हैं ।
गीता एक तरफ कहता है - तीन गुण आत्मा को देह में रोक कर रखते हैं और दूसरी ओर गुनातीत बनाना चाहता है ।
गीता कहता है - तीनगुन गुनातीत प्रभु से हैं और प्रभु में ये गुण नहीं हैं और इनसे प्रभु प्रभावित भी नही होता ।
गीता कहता है - भोग तत्वों की उपज तीन गुणों से है और भोग तत्वों के प्रति होश प्रभु में पहुंचाता है ।

मनुष्य एवं प्रभु के मध्य एक झीना पर्दा है जिसको संसार कहते हैं जो भोग तत्वों से परिपूर्ण है ।
संसार के प्रति होश बैराग्य से मिलता है और बैराग्य तब मिलता है जब प्रकृति - पुरुष , क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ का
बोध होता है ।
प्रभु मय होनें के लिए .........
[क] स्वयं को जानना होता है
[ख] संसार को जानना होता है
[ग] भोग तत्वों को समझना होता है
प्रभु का मार्ग इतना कठिन भी नहीं है और -----
इतना आसान भी नहीं है ।
गीता के आधार पर प्रभु की ओर चलनें वाला पहले बैरागी बनाता है
और बैरागी स्वतः प्रभु में होता ही है ।

===== ॐ ======

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