Saturday, May 8, 2010

जपजी साहिब - 19


असंख नाव असंख थाव
अखरी नामु अखरी सालाह
अखरी गियानु गीत गुण गाह
अखिरी लिखणु बोलणु बाणी
विणु नावै नाही को थाऊ
तूं सदा सलामति निरंकार ॥

आदि गुरूजी साहिब कहतेहैं ----
अनगिनत उसके नाम - स्थान हैं
अक्षर ही उसका नाम और प्रशंसक है
अक्षर ज्ञान , गीत और गुण है
अक्षर से वाणी और लेख हैं
तूं निरंकार सर्वत्र है ॥
अब आप गुरु की इन बातों के सम्बन्ध में गीता को देखिये ------
गीता सूत्र - 8.3 ....... अक्षरं ब्रह्म परमं
गीता सूत्र - 8.21 .... अब्यक्त : अक्षर
गीता सूत्र - 10.25 .. एकं अक्षरम
गीता सूत्र - 10.35 .. गायत्री छंद अहम्
गीता सूत्र - 7.8 ...... प्रणवः सर्ववेदेषु , और आगे ------
गीता में अर्जुन का तेरहवां प्रश्न है ..........
साकार और निराकार योगियों में उत्तम योगी कौन है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं ----
सभी योगी उत्तम हैं लेकीन जो प्रेम से मुझे भजता है , वह मुझे भाता है ।
निराकार उपासना अति कठिन उपासना है और ऐसे योगी
दुर्लभ होते हैं [ गीता - 7.3, 7.19, 12.5 ]
सत , सत है , सत का रंग कभी नही बदलता चाहे वह शांख्य - योगी द्वारा ब्यक्त हो
या परम प्रीति में डूबे परा भक्त के द्वारा ब्यक्त किया जा रहा हो ।
निराकार की उपासना क्यों कठिन उपासना है ?
जिसको हम पहचानते नहीं , जानते नहीं , कभी देखा नहीं , कभी
जिसकी आवाज को सूना नहीं , उस पर
हम अपना ध्यान केन्द्रित कैसे कर सकते हैं ?
साकार से निराकार में पहुँचना -----
सगुण से निर्गुण में प्रवेश पाना -----
एक घटना है जो हजारों में किसी एक के साथ घटती है और वह ब्यक्ति होता है .....
आदि गुरु नानकजी साहिब , कबीरजी साहिब जैसा लेकीन ऐसे लोग सदियों के बाद अवतरित होते हैं ।

==== एक ओंकार ======

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