Saturday, May 1, 2010
गीता अमृत - 83
गीता दर्शन - 1
यहाँ हम देखनें जा रहे है , गीता के कुछ सत बचनों को , आप तन ,
मन एवं बुद्धि से आमंत्रित हैं -----
[क] चिंता करता का प्रतिबिम्ब है ......
[ख] करता भाव अहंकार की छाया है -- गीता - 3.27
[ग] चिंता वर्तमान हो छीन लेती है ---
[घ] वर्तमान जीवन के रूप में प्रभु का प्रसाद है .....
[च] हमारा वर्तमान धीरे - धीरे सरक रहा है .....
[छ] जो यह सोचता है की वर्तमान सरक रहा है ,वह चिंता में होता है ....
[ज] जो यह समझता है की वर्तमान सरक रहा है वह सम भाव में रहता हुआ
प्रभु में लींन रहता है ....
[झ] वर्तमान को स्वीकारना सत है और वर्तमान से भागना , अज्ञान है .....
[झ-क] योगी पल - पल जीता है और भोगी की कल की सोच उसके
आज को नरक बना देती है ॥
==== ॐ =======
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