Sunday, May 9, 2010

जपजी साहिब - 20


भरिए हथु पैरु तनु देह
पाणी धोते उतरसु खेह
भरिए मति पापा के संगि
ओहु धोपै नावै के रंगि
आपे बीजि आपे ही खाहु
नानक हुकमी आवहु जाहु ॥

आदि गुरूजी साहिब कह रहे हैं ------
तन को निर्मल करता पानी .....
निर्मल बुद्धि नाम से होती .....
जैसा करनी वैसा भरनी .....
जीवन - मरण प्रभु की करनी ॥
अब आप इस सम्बन्ध में गीता को देखिये ------
[क] गीता सूत्र - 6.20 - 6.21 ...... ध्यान से बुद्धि निर्मल होती है
[ख] गीता सूत्र - 13.24 ...... ध्यान से प्रभु ह्रदय में मिलता है
[ग] गीता सूत्र - 4.38 .... ध्यान से ज्ञान मिलता है
[घ] गीता सूत्र - 13.2 .... ज्ञान से क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ का बोध होता है
[च] गीता - 5.14 ......... प्रभु करता पंन ,कर्म एवं कर्म फल की रचना नहीं करता , यह सब स्वभाव से होते हैं

===== एक ओंकार =====

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