Friday, May 7, 2010

जपजी साहिब - 18


असंख गल बढ़ हतिआ कमाहि
असंख पापी पापु करि जाई
असंख मलेछ मलु भखि खाहि
असंख निंदक सिरि करहि भारु
नानकु नीचु कहैं बीचारु
तूं सदा सलामत निरंकार ॥

आदि गुरु श्री नानकजी साहिब कहते हैं -----
लोगों का गला काटनें वाले पापी - हत्यारे .....
अनेक हैं ।
निंदक भी अनेक हैं .....
गंदा भोजन करनें वाले मलेक्ष भी अनेक हैं ।
नानकजी साहिब कहते हैं ----
प्रभु ! तूं तो निराकार हो ।

आप यहाँ गीता सूत्र - 18.19 - 18.44 तक और 17.4 - 17.22 तक को देखें ।
गीता कहता है ......
गुण विज्ञान में तीन प्रकार के गुण हैं , तीन प्रकार के लोग हैं और उन सबका अपना - अपना -----
मन है .....
बुद्धि है .....
पूजा है ....
यज्ञ है ....
साधना है ....
खान - पान , कर्म , सुख , दुःख हैं ......
गीता आगे यह भी कहता है - गीता - 7.12 - 7.13 -----
तीन गुण प्रभु से हैं लेकीन प्रभु गुनातीत है । वह जो गुणों के सम्मोहन में उलझा रहता है , वह प्रभु से दूर रहता है ।
गुण प्रभु एवं मनुष्यके मध्य एक परदे का काम करते हैं अर्थात प्रभु के आयाम में पहुंचनें वाला गुणों से
सम्मोहित नहीं होता ।
गीता में अर्जुन का तीसरा प्रश्न है -----
मनुष्य पाप क्यों करता है - गीता .... 3.36, और प्रभु अर्जुन से कहते हैं ------
मनुष्य पाप करताहै , काम के सम्मोहन में आकर और काम राजस गुण का मूल तत्त्व है [ गीता - 3.37 ]
जपजी में एक तरफ है परा भक्त श्री नानकजी साहिब की बात और दूसरी ओर है - बुद्धि - योग का सांख्य - योग
जो परम श्री कृष्ण अर्जुन को तब देते हैं जब अर्जुन के सर पर युद्ध के बादल गरज रहे हैं , आप को जो पसंद
आये आप उसे धारण करें , लेकीन इतनी सी बात याद रखें ----
दोनों मार्ग आप को एक ही जगह पहुंचाते हैं ।

===== एक ओंकार =====

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