Saturday, May 22, 2010
गीता गुण रहस्य भाग - 12
मनुष्य , गुण एवं अहंकार
यहाँ मनुष्य का जीवन गुण एवं अहंकार पर किसतरह से आधारित है , को समझनें के लिए गीता के निम्न सूत्रों को अपनाना होगा -----
[क] गीता सूत्र - 6.27 ..... राजस गुण मनुष्य को प्रभु की ओर चलनें नहीं देता ।
[ख] गीता सूत्र - 3.27 ..... गुण कर्म करता हैं , मनुष्य कर्म करता नहीं है लेकीन करता भाग अहंकार से आता है ।
[ग] गीता सूत्र - 2.52 .... मोह में बैराग्य प्राप्त करना असंभव है
[घ] गीता सूत्र - 7.20 , 7.27 , 18.72 - 18. 73
राजस एवं तामस गुण अज्ञान की जननी हैं ।
अब आप कुछ सोंचे .......
क्या हमारा कोई काम बिना ------
** कामना
** क्रोध
** लोभ
** मोह
** अहंकार के होता है
जी नहीं होता । गीता कहता है --- ऐसे कर्मों से तुम प्रभु के चरणों में नहीं पहुँच सकते । ऐसे कर्म नरक की ओर ले जाते हैं ।
गीता में कोई अपना और कोई पराया नहीं होता , गीता मात्र दो श्रेणियों में मनुष्य को बाटता है - एक वह लोग हैं जो
बिना किसी चाह के प्रभु से जुड़े हैं और दूसरी श्रेणी उनकी है जो प्रभु से भी जब जुड़ते हैं तब भोग - प्राप्ति कारण
होता है । गीता योगी भोग में निर्विकार की खोज करता है और भोगी निर्विकार में भी
विकारमय तत्वों को खोजता है ।
योगी के लिए भोग एक योग का माध्यम है और भोगी के लिए प्रभु भी भोग का
एक श्रोत है ।
==== ॐ =====
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