Saturday, May 15, 2010

गीता गुण रहस्य भाग - 05

प्रकृति क्या है ?

गीता में निम्न सूत्रों को आप देखें ------
7.4 - 7.6 , 13.4 - 13.5 , 13.2 , 13.19 , 13.23 , 13.34 ,
7,12 - 7।15 , 12.3 - 12.4 , 2.42 - 2.44 , 14.3 - 14.4 ,

गीता कहता है - प्रकृति एवं पुरुष के योग से जीव बनाता है । गीता का यह छोटा सा सूत्र वह है जिसको आज विज्ञान अनेक रास्तों से खोज रहा है । नुक्लिअर विज्ञान में न्यूक्लिअर फुजन होता है जिसमें दो हलके एटम मिल कर
तीसरे एक भारी एटम का निर्माण करते हैं और इस प्रक्रिया में भारी मात्रा में ऊर्जा बाहर निकलती है ।
गीता तत्त्व - विज्ञान में नर एवं मादा के एटम जब आपस में मिलते हैं और इन दोनों के मिलनें से यदि ऎसी ऊर्जा
निकले जो ब्रह्म ऊर्जा को अपनी ओर खीच सके तब जीव की उत्पत्ती होती है ; यह प्रक्रिया डबल न्यूक्लिअर
फ्यूजन की तरह ही है ।

अपरा एवं परा , प्रकृति के दो रूप हैं ; एक सविकार है जिसको मन - बुद्धि स्तर पर समझा जा सकता है और
दूसरी है - परा जो निर्विकार चेतना है जिसको समझनें के लिए ध्यान से गुजरना पड़ता है ।
अपरा प्रकृति में आठ तत्व हैं ; पञ्च महाभूत , मन , बुद्धि एवं अहंकार । पूरा ब्रह्माण्ड गति मान है , हमारी गलेक्सी
घूम रही है , पृथ्वी अपनें धुरी पर एवं सूर्य के चरों तरफ चक्कर लगा रही है और पृथ्वी के परिधि पर हम सब
चल रहे हैं , और पञ्च महाभूतों के सहयोग से कुछ - कुछ कर रहे हैं , यह सब मिल कर प्रकृति में
एक परिवर्तन की लहर पैदा करता है जो प्रकृति में साकार सूचनाओं के रूपांतरण में सहयोग करता रहता है ।

जो कुछ हम करते हैं उसका सीधा सम्बन्ध अपरा प्रकृति से होता है लेकीन करते समय हम केवल अपना
स्वार्थ देखते हैं और यह भूल जाते हैं की जो हम कर रहे हैं उसका असर प्रकृति पर कैसा पड़ेगा ?
अपरा प्रकृति , परा प्रकृति एवं मनुष्य से वह वातावरण बनाता है जिसमें अन्य जीव जीते हैं , जल , वायु एवं
तापक्रम में एक संतुलन सा बन जाता है और यह संतुलन ही जीवों के लिए जीवन रेखा का काम करता है ।
आज विज्ञान - युग में .......
पृथ्वी द्रोपती की तरह कराह रही है -----
निर्वस्त्र सिसक रही है ------
अन्दर- बाहर से खोखली हो रही है .......
सर से गंजी हो चली है और कह रही है ......
हे प्रभु ! इन इंसानों को सत बुद्धी दो ।

===== ॐ =======

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