Tuesday, May 18, 2010

गीता गुण रहस्य भाग - 08

[ख] राजस गुण तत्त्व - कामना, क्रोध ,लोभ

यहाँ हमें गीता के निम्न श्लोकों को देखना चाहिए ...........
2.11 , 2.55 , 2.62 , 2.63 , 2.71 , 4.10 , 4.19 , 5.23 , 5.26 ,
6.2 , 6.4 , 6.24 , 7.20 , 7.27 , 14.7 , 14.12 , 15.5

आइये अब देखते हैं इन सूत्रों में क्या है जो भोग से योग में यात्रा कराता है -------
सूत्र - 2.11 सम भाव ब्यक्ति , पंडित है
सूत्र - 2.55 कामना से अछूता , आत्मा केन्द्रित ब्यक्ति है
सूत्र - 2.62 - 2.63 कामना टूटनें का गम क्रोध पैदा करता है , क्रोध में ब्यक्ति का संतुलन बिगड़ जाता है और
वह पाप कर बैठता है ।
सूत्र - 2.71 कामना - ममता रहित ब्यक्ति शांत बुद्धि वाला होता है
सूत्र - 4.10 राग - भय क्रोध रहित ब्यक्ति ग्यानी होता है
सूत्र - 4.19 कामना - संकल्प रहित ब्यक्ति , पंडित - ग्यानी होता है
सूत्र - 5.23 , 5.26 कामना - क्रोध से अप्रभावित ब्यक्ति परम से परिपूर्ण होता है
सूत्र - 6.2, 6.4 संकल्प रहित ब्यक्ति , योगी होता है
सूत्र - 6.24 संकल्प कामना ही जड़ है
सूत्र - 7.20 कामना अज्ञान की जननी है
सूत्र -7.27 कामना - मोह अज्ञान की जननी हैं
सूत्र - 14.7 आसक्ति, कामना , राग राजस गुण के तत्त्व हैं
सूत्र - 14.12 लोभ राजस गुण से आता है
सूत्र - 15.5 आसक्ति - कामना राहोत कर्म करनें वाला परम पद प्राप्त करता है

राजस गुण के तत्वों को स्पष्ट करनें के लिए गीता से कुछ ऐसे सूत्रों को यहाँ लिया गया है जो राजस गुण को ठीक
ढंग से स्पष्ट कर सकें । मैं कोई बैरागी नहीं , मैं कोई योगी नहीं , मैं भोग में हूँ और अब एक - एक कदम फूक
फूक कर चल रहा हूँ लेकीन भयभीत भी नहीं हूँ । मैं सोचता हूँ परमात्मा हमें सब कुछ दिया , सब कुछ दिखाया ,
पृथ्वी के तीन चौथाई भाग का भ्रमण भी कराया लेकीन अपनी इस ६० साल के जीवन में कभी अन्दर वह त्वरा
न पैदा हुई जो यह कहे -----
अरे भोलू कहाँ तक और कब तक भागता रहेगा , यदि देखना ही है तो उसे क्यों नहीं देखनें के बारे में सोचता जो
इस संसार का आदि मध्य और अंत है , बश जिस दिन यह भाव उठा , गीता अपनें आप मेरे हांथों में आ गया ।
गीता को मैं प्रभु की किताब समझ कर भय भीत नहीं रहता , गीता तो मेरा मित्र है जो हर पल मेरे साथ रहता है ।
गीता उब सब का द्रष्टा है जो मैं करता हूँ , जो मैं सुनता हूँ , जो मैं सोचता हूँ और अब तो यही चाह है की -----
संसार से बिदा होते समय गीता कका परम प्रकाश मेरे चारों ओर रहे ।
जर्मनी का महान लेखक गेटे जब दम तोड़ रहा था तब बोला ------
सारे दीपक बुझा दो , अब इनकी जरुरत नहीं क्यों की अब मुझे परम प्रकाश दिख रहा है ।

==== हे दीना नाथ =======

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