Friday, May 21, 2010

गीता गुण रहस्य भाग - 11

अहंकार



अहंकार और क्रोध का सम्बन्ध क्या है ? आप इस सम्बन्ध में पौराणिक कथाओं को
देख सकते हैं ।

हमारे ऋषि लोग बात बात पर श्राप देते हैं , अपनें नाक पर मक्खी नहीं
बैठनें देते , आखिर कार कारण क्या है ?

त्रिकाल दर्शी ऋषि लोग , क्यों इतनें क्रोधी थे ? श्री राम एवं श्री कृष्ण तक को
ये ऋषि लोग श्राप देनें में कंजूसी नहीं दिखाई , आखिर बात क्या है ?



गीता कहता है [ गीता सूत्र - 3.6 ] -- इद्रियों को जो हठात नियोजित करता है वह
अहंकारी होता है अर्थात वह जो अपनें मन की गति पर हठात अंकुश लगा
कर रखता है , वह अहंकारी होता है ।

अहंकार अपरा प्रकृति के आठ तत्वों में से एक तत्त्व है [ गीता सूत्र - 7.4 ] और यह गुणों में गति देता है ।

गीता कहता है [ गीता सूत्र - 3.27 ] - करता भाव अहंकार के कारण
आता है और गीता सूत्र - 16.18 कहता है --अहंकार आसुरी स्वभाव का लक्षण है ।
आप जब गीता सूत्र - 18।58 - 18.59 को देखेंगे तो आप को मिलेगा की मोह में भी अहंकार की ऊर्जा होती है । गीता सूत्र - 2.62 कहता है - जब कामना टूटनें की आशंका होती है तब क्रोध पैदा होता है ।



क्रोध तीन गुणों - सात्विक , राजस एवं तामस में अपनी ऊर्जा को कुछ इस ढंग से बहता रहता है की मनुष्य प्रभु की सोच में अधिक समय तक अपनें को नही रख पाता । इन्दियाँ , मन या बुद्धि के साथ जोर जबरदस्ती करनें से अहंकार का फैलाव होता है । कामना में यह परिधि पर होता है और दूर से दिखता है लेकीन मोह में यह सिकुड़ कर केंद्र पर पहुँच जाता है जो ऊपर से नहीं दिखता लेकीन अन्दर से मनुष्य के मन - बुद्धि को नियंत्रित करता है ।



वह जो अपनें मन का पीछा करता रहता है और इस ध्यान विधि
में अपना समय अधिक लगाता है
उसको अहंकार प्रभावित नहीं कर पाता ।

वह जो अपनेंको आत्मा - परमात्मा पर केन्द्रित रखता है उसे अहंकार तब तक नहीं
छू पाता जब तक वह होश में रहता है ।

वह जो प्रकृति - पुरुष के रहस्य को समझता है उसे अहंकार नही छु पाता ।

वह जिसको अहंकार नहीं छू पाता वह प्रभु मय होता है और ऐसे लोग -----

दुर्लभ होते हैं ।

==== ॐ ======

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