Wednesday, May 19, 2010

गीता गुण रहस्य भाग - 09

[ग] काम ऊर्जा [ Sex Energy ]

गीता में काम से सम्बंधित निम्न श्लोकों को देखना चाहिए --------
3.36 - 3.43 तक , 5.23 , 5.26 , 16.21 , 7.11

गीता में अर्जुन अपनें तीसरे प्रश्न में प्रभु से जानना चाहते हैं ----
मनुष्य न चाह्तेहुये भी पाप क्यों करता है ?
प्रभु स्पष्ट रूप से कहते हैं - गीता - 3.37 ] - मनुष्य काम के सम्मोहन में पाप करता है ।
अध्याय तीन में श्लोक 3.37 से 3.43 तक में प्रभु कहते हैं -----
राजस गुण का मुख्य तत्त्व है काम और क्रोध , काम का रूपांतरण है क्यों की कामना टूटनें के संदेह में
क्रोध पैदा होता है - गीता - 2।62 । ।
काम का सम्मोहन इन्द्रिय , मन एवं बुद्धि तक होता है लेकीन वह जिसका केंद्र - आत्मा होता है , काम से अप्रभावित रहता है । काम क्रोध एवं लोभ अर्थात राजस गुण के तत्त्व नरक के द्वार हैं और इनसे अप्रभावित ब्यक्ति ,
योगी होता है । प्रभु आगे यह भी कहते हैं ---- निर्विकार काम ऊर्जा , मैं हूँ ।

काम ऊर्जा एक ऎसी ऊर्जा है जिस से राम तक की यात्रा तो की जा सकती है लेकीन यह यात्रा है जोखिम भरी ।
तंत्र का एक भाग काम साधना है लेकीन इस मार्ग पर जो चलते हैं उनमें से अधिकाँश साधक पागल हो जाते हैं
और कुछ की मृत्यु भी हो जाती है ।

===== om ======

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