Wednesday, May 5, 2010
जपजी साहिब - 16
जपजी साहिब - 16 में कुल चौबीस पंक्तियाँ हैं जिनमें से चार को यहाँ लिया जा रहा है ।
पंचा का गुरु एकु धिआनु ....
जीअ जाति रंगा के नाव ...
सभना लिखिआ बुडी कमाल ....
एहु लेखा लिखि जानै कोई ॥
सत गुरूजी साहिब कहते हैं -----
सत पुरुष का एक गुरु है - ध्यान ....
जीव - जातियां हैं , अनेक --
सब का रंग है अनेक , लिकिन --
सब का मूल है , एक , लिकिन --
इस रहस्य को कौन जानता है ?
ध्यान क्या है ?
ध्यान सिद्धि पर ज्ञान की प्राप्ति होती है -- गीता सूत्र .... 4.38 और ध्यान के माध्यम से प्रभु का बोध होता है ,ह्रदय में -- गीता सूत्र .... 13.24
ज्ञान क्या है ? वह जो यह बताये की क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ क्या हैं , ज्ञान है .... गीता सूत्र - 13.2
ध्यान वह है जिसका सम्बन्ध ज्ञान से है और ज्ञान का सम्बन्ध प्रभु से है ।
ध्यान एक मार्ग है , जिस पर चलते रहनें वाला एक दिन अन्दर से पूर्ण रूप से रिक्त
हो जाता है और अन्तः करन की रिक्तता में मन - बुद्धि में निर्विकार ऊर्जा प्रवाहित होती है
जो प्रभु से भर देती है - अन्तः करन को ।
प्रभु एक है , जो गुनातीत है लेकीन मन - बुद्धि स्तर पर वह अनेक रूपों में दिखता है ।
गीता कहता है ------
एक बुद्धि में एक समय भोग - भगवान् दोनों को नहीं रखा जा सकता -
गीता सूत्र .... 2.42 - 2.44 तक ।
ब्रह्म की पकड़ मन - बुद्धि के बश में नहीं है -- गीता सूत्र - 12.3 - 12.4 तक ।
==== एक ओंकार =====
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