वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिता:।
बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागताः ॥ गीता श्लोक 4.10
श्लोक कहरहा है ......
राग, भय, क्रोध से अप्रभावित ब्यक्ति परमात्मा मय होता है ।
गीता में अर्जुन का प्रश्न तीन एवं चार काम उर्जा से सम्बंधित हैं और यह सूत्र प्रश्न चार से सम्बंधित है ।
यहाँ सूत्र से यह स्पष्ट होता है ....राग,भय एवं क्रोध साधना के अवरोध हैं लेकिन इनसे अप्रभावित कैसे
रहा जा सकता है ? राग , भय एवं क्रोध , भोग तत्त्व हैं जिनका अपना-अपना रस होता है और इन रसों में
सम्मोहन होता है जो भोग के चारों तरफ़ चक्कर कटवाता रहता है और इस चक्कर में जीवन उसे नहीं
पकड़ पाता जिसको पकड़ना जीवन का लक्ष्य है ।
राग,भय एवं क्रोध क्या हैं ?
राग-क्रोध के लिए आप देखें ...गीता सूत्र-2.62-2.63, 3.37, 6.27
इद्रिय - बिषय जब आपस में मिलते हैं तब मन में बायो-केमिकल परिवर्तन के फल स्वरूप मन में राग का रस बनता है जिस से आसक्ति बनती है , आसक्ति से कामना बनती है और कामना टूटनें का भय क्रोध पैदा करता है ।
राजस गुनके तत्त्व हैं ---राग , आसक्ति , कामना , क्रोध , लोभ और तामस गुन के तत्त्व हैं ---मोह भय तथा आलस्य । राजस गुन के तत्वों के प्रभाव में अहंकार परिधि पर होता है और दूर से दिखता है लेकिन -------
तामस गुन तत्वों के प्रभाव में यह सिकुड़ा हुआ केन्द्र पर होता है जिसको बाहर से नहीं देखा जा सकता ।
मनुष्य को एक निर्विकार उर्जा मिली हुई है जो भोग से परिपूर्ण संसार की हवा के प्रभाव में सविकार हो जाती है क्योंकि गुणों के तत्त्व उस निर्विकार उर्जा में आसानी से घुल जाते हैं ।
गीता श्लोक 4.10 के माध्यम से कहता है -----
राजस-तामस गुन प्रभु के मार्ग में अवरोध हैं , इनसे बचनें का उपाय करो । गीता सूत्र 3.37 कहता है --
काम का रूपांतरण क्रोध है और काम राजस गुन का प्रमुख तत्त्व है ।
राग एवं क्रोध राजस गुन के तत्त्व हैं और भय है तामस गुन का तत्त्व अतः गीता का इशारा सीधे इन दो गुणों की तरफ़ है ।
गीता ज्ञान का मुख्य बिषय है तामस गुन क्योकि परम श्री कृष्ण अर्जुन को युद्ध से पूर्व मोह मुक्त करना
चाहते हैं । कामना एवं मोह अज्ञान की जननी हैं और अज्ञान मनुष्य को इंसान से सैतान बना देता है ।
=====ॐ=====
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment