Sunday, December 27, 2009

गीता-ज्ञान 36

योगारूढ़ योगी के चित्त की क्या स्थिति होती है ? गीता श्लोक .....6.19

गीता कह रहा है ----
योगारूढ़ योगी का चित्त वैसे होता है जैसे वायु रहित स्थान में एक दीपक की ज्योति की स्थिति होती है ।

आप सोचिये की वायु रहित स्थान में रखे गए एक दीपक की ज्योति कैसी होती है ? और आप कुछ दिन
इस ज्योति को देखें भी तो अच्छा रहेगा ।
मनुष्य के चित में कौन गति लाता है ?---हमारी सोच हमारे चित में लहर पैदा करती है और यदि सोच
राजस-तामस गुणों के कारन है तो यह लहर सघन होती है । मन की गति को कैसे शांत करें ? इस बात को हम अगले अंक में देखेंगे लेकीन यहाँ हमें गीता के निम्न श्लोकों को देखना चाहिए ------
7.12 - 7.15 , 7.19 , 7.23 , 4.38 , 13.24 , 13.1 - 13.3 , 15.3 , 2.55 , 2.69 , 6.29 - 6.30 , 18.54 - 18.55

योग में तल्लीन वह योगी है जो -----
[क] प्रकृति-पुरुष के रहस्य को जानता है ।
[ख] गुणों के बंधनों को समझता है ।
[ग] सुख-दुःख से अप्रभावित हो ।
[घ] द्रष्टा हो ।

गीता को पढ़ना आसान है , गीता को सुनना आसान है लेकिन गीता को जीवन में ढालना अति कठिन है
गीता को आप अपना कर अपनें को गंगा-जल की तरह निर्मल कर सकते हैं और जब ऐसा होगा तब ------
आप तन-मन से परमात्मा मय हो उठेंगे ।

=====ॐ=====

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