गीता श्लोक 4.21- 4.23 तक
यहाँ गीता कहता है -------
आशा रहित , ईर्ष्या रहित , द्वन्द रहित , आसक्ति रहित , ममता रहित , पाप न करनें वाला , परमात्मा
जिसका केन्द्र हो , वह कर्म-योगी है और ऐसा ब्यक्ति कर्मों का गुलाम नहीं बन पाता।
यह सूखा हुआ तालाब आप को क्या दे सकता है , आप गीता ज्ञान मुझसे नहीं प्राप्त कर रहे हैं , यह जो आप को मिल रहा है वह गीता सागर की बूँद समझ कर यदि आप अपनाते हैं तो मैं अपनें को धन्य भागी समझूंगा ।
अब आप मेरी बात क्या सुनेंगे , सुनना ही है तो सुनिए उसे जो गीता सुना रहा है --------
गीता सूत्र - 2.62-2.63
मन के मनन से आसक्ति उपजती है जो कामना का गर्भ है । कामना जब टूटती है तब
क्रोध पैदा होता है जो एक अग्नि है और पाप कर्मों का मूल-श्रोत भी ।
गीता सूत्र - 3.36- 3,43 तक
काम राजस गुन का मुख्य तत्त्व है जिसका सम्मोहन पाप करनें के लिए प्रेरित करता है और काम का
रूपांतरण , क्रोध है ।
गीता सूत्र - 2.52, 6.27
राजस - तामस गुणों से प्रभावित ब्यक्ति परमात्म से दूर रहता है ।
गीता सूत्र - 5.10
आसक्ति राहित कर्म-करता भोग संसार में कमलवत रहता है ।
गीता सूत्र - 3.19- 3.20
आसक्ति के बिना कर्म करनें वाला ब्यक्ति राजा जनक की तरह बिदेह की तरह रहता है , बिदेह वह है जिसका सबिकार देह निर्विकार हो ।
गीता कहता है , यह तेरे को कैसे प्राप्त हो सकता है ?
इस के लिए आप देखिये गीता सूत्र 6.26 जो कहता है -------
मनुष्य अपनें मन का गुलाम है , यदि तेरी यह गुलामी समाप्त हो जाए तो तूं परमात्मा को नहीं खोजेगा , उसकी आवाज तेरे को मिलनें लगेगी लेकिन इस
काम के लिए तेरे को अपनें मन का हमेशा पीछा करते रहना होगा ।
मनुष्य एवं परमात्मा के मध्य मन का एक झीना परदा है जिसको पार करना है और जब यह सम्भव होता है तब
परमात्मा का आयाम स्वतः दिखनें लगता है ।
पहले गीता को पढो फ़िर स्वयं को गीता में खोजो , यह अभ्यास तेरे को परम धाम की यात्रा करा देगा ।
=====ॐ=====
Wednesday, December 9, 2009
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