Wednesday, December 16, 2009

गीता ज्ञान --27

गीता में ज्ञान क्या है ?
गीता के सभी 700 श्लोक ज्ञान के श्रोत हैं लेकिन ज्ञान शब्द से परिचय के लिए निम्न श्लोकों को देखना
अच्छा रहेगा ........
2.47- 2.52,
4.38
7.3- 7.6, 7.20, 7.27
13.1- 13.3, 13.5- 13.11
14.6, 14.11, 14.14, 14.17, 14.20, 14.3- 14.4
15.1- 15.3, 15.16
16.13- 16.20
गीता के चालीश सूत्र आप को क्या देते हैं ? इस को आप नीचे देखें -------
गीता कहता है .....[गीता - 13.2]
वह जो क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ का बोध कराये , ज्ञान है । ज्ञान की प्राप्ति [गीता सूत्र 15.3 ] बैराग्य के माध्यम से
संभव है ।
बात हो अति सरल दिखती है लेकिन है जटिल । गीता के किसी शब्द का वह अर्थ नहीं है जो हम समझते हैं -
इस बात को समझ कर गीता को अपनें हाँथ में लेना चाहिए । गीता एक ऐसा है जिसमें जिसके मूल
शब्दों का स्पष्टीकरण दिया गया है अतः गीता के शब्दों का अर्थ गीता में खोजना उत्तम होगा ।
अब आप आगे देखिये , क्षेत्र को समझनें के लिए हमको गीता के कमसे कम निम्न श्लोकों को देखना होगा ---
7.3- 7.6, 13.5- 13.6, 14,3- 14.4 , 14.20, 15.16
क्षेत्र वह है जिसमें क्षेत्रज्ञ का निवास है , एक चिड़िया एक घोसला बुनती है और उसमें निवास करती है , हम-आप घर बनाकर उसमें रहते हैं , यहाँ सब का अपना- अपना निवास स्थान हैं और क्षेत्रज्ञ का निवास क्षेत्र में है जो
क्षेत्रज्ञ में ही है ।
अपरा - परा प्रकृतियों के योग में जब क्षेत्रज्ञ होता है तब वह क्षेत्र प्राण मय होता है । अपरा प्रकृति में
आठ तत्त्व हैं ; पञ्च महा भूत , मन , बुद्धि एवं अहंकार और परा निर्विकार चेतना है ।
मन के फैलाव के रूप में दस इन्द्रियाँ , पांच बिषय एवं विकार तत्त्व मिलकर क्षेत्र का निर्माण करते हैं ।
क्षेत्र में ह्रदय एक ऐसा माध्यम है जो क्षेत्रज्ञ का स्थान है [ देखिये गीता-15।11, 15.15, 18.61] , जब यह पता चलता है तब बोध होता है की क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ का सम्बन्ध किस तरह से है ?
सविकार पिजड़े में निर्विकार का होना खुद अपनें में एक रहस्य है और इसका बोध ही ज्ञान है जो बैराग्य में मिलता है [ गीता 15.3 ],बैराग्य क्या है ?
जो बिना राग हो , वह बैरागी है , राग क्या है ? राग वह पकड़ है जो राजस-तामस गुणों से तैयार होता है ।
कोई भी ब्यक्ति इस भोग संसार में हर पल बैरागी नहीं है , और कोई भी ब्यक्ति हर पल भोगी नहीं है , यह तो मनुष्य के अन्दर तीन गुणों का समीकरण [गीता - 14।10 ] करता है ।
राजस-तामस गुण अज्ञान के मार्ग पर ले जाते हैं और सात्विक गुण बंधन होते हुए भी ज्ञान - मार्ग पर
ले जाता है । राजस-तामस गुणों में अहंकार नेता होता है और सात्विक गुण में यह छिपा हुआ होता है ।
====ॐ======

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