Friday, December 11, 2009

गीता-ज्ञान....21

कोई नाचता दिखता है .....
कोई प्रबचन देता दिखता है ....
कोई चुप पेंड के नीचे बैठा दिखता है .....
लोग उनको देख कर अपना-अपना अर्थ लगाते रहते हैं , लेकिन सत्य क्या है ?
गीता श्लोक 5.5 कहता है --------
सांख्य - योगी को योग-सिद्धि पर जो प्राप्त होता है वही प्राप्ति अन्य योगियों को भी मिलती है जब उनका
योग सिद्ध होता है । हिंदू शाश्रों में लोगों की दो श्रेणियां हैं; आस्तिक एवं नास्तिक की ।
आस्तिक वर्ग में छः मार्ग हैं --वैशेशिका, पूर्व मीमांस, न्याय,योग , वेदांत और नास्तिक में जैन,बौध एवं
चार-वाक् को रखा गया है ।
अब आप इस वर्गीकरण के बारे में सोचें की इस को किसनें और कब तैयार किया होगा ?
भारत में पहले जो धर्म राजा का होता था वही धर्म प्रजा का भी होता था । चंद्र गुप्त [322-298 BC], अपना आखिरी वक्त एक जैन मोंक के रूप में बिताया और अशोक [273-232 BC ] अपना आखिरी समय
बौध भिक्षुक के रूप में गुजारा । भारत लगभग दसवी शताब्दी के प्रारम्भ में गुलामी की ओर जानें लगा तो क्या
चंद्र गुप्त से लेकर दसवी शताब्दी तक जैन-बुद्ध को माननें वाले भारतीय नास्तिक थे ?
बुद्ध -जैन मान्यताओं में सीधे तौर पर परमात्मा का नाम नहीं मिलता लेकिन इनमें वही बाते हैं जो मीमांस , सांख्य एवं न्याय में हैं फ़िर इनको कैसे नास्तिक बर्ग में रखा जा सकता है ?
आदि गुरु शंकर [788- 820 AD ]भारत-भूमि पर सनातन धर्म की हवा बहायी और सभी मीमांसक लोगों को अपना चेला बनाया लेकिन वेलोग क्या सही ढंग से उनसे जुड़ पाये थे ? इस प्रश्न पर संदेह हो सकता है ।
आदि शंकर ऐसी कौन सी नयी बात दी ? और जो दिया वह पहले से था केवल उसका नाम अलग- अलग था ।
शाश्रों का निर्माण सिद्ध योगी नहीं करते उनके साथ रहनें वाले राजनितिक लोग करते हैं । जेसस के
तीन सौ वर्ष बाद क्रिश्चियन धर्म बना और मोहमद साहिब के सौ वर्ष बाद साउदी अरब के खलीफ लोग इस्लाम का प्रसार किया , ऐसा होता रहा है , हो रहा है और आगे भी होता रहेगा ।
गीता सूत्र 5.5 कहता है ----मार्ग अलग - अलग हैं लेकिन सभी मार्गो से जो मिलता है वह एक होता है ।
गीता सूत्र 4.38 कहता है ---योग सिद्धि से ज्ञान मिलता है और गीता सूत्र 13..2 कहता है -------
ज्ञान वह है जिस से प्रकृति-पुरूष का बोध हो ।
बोध मिलनें पर -----
कोई नाचता रहता है ....
कोई गाता रहता है ......
कोई अपनें ज्ञान को शव्दों के माध्यम से बाटता रहता है तो ----
कोई चुप रह कर परम आनंद में होता है ---यह है ......
एक के अनेक रूप ।
====ॐ======

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