गीता श्लोक 5.11 कहता है -------
आसक्ति एवं ममतारहित कर्म से कर्म-योगी अपनें तन,मन तथा बुद्धि को निर्विकार उर्जा से भरता है ।
गीता सांख्य के आधार पर बुद्धि - योग की गणित है जो अपनें अधूरे सूत्रों के आधार पर पूर्णता की ओर
ले जाता है । गीता का सूत्र जो ऊपर दिया गया है उसमें आसक्ति तीन गुणों की जननी है और ममता
तामस गुण का तत्त्व है ।
गीता अपनें सूत्र 6.27 में कहता है -----
राजस गुण के साथ परमात्मा से जुड़ना असंभव है और यहाँ कह रहा है की आसक्ति-ममता के बिना किया
गया कर्म , प्रभु से जोड़ता है अर्थात गुण एवं गुणों के भाव प्रभु के मार्ग में अवरोध हैं ।
चलना तो स्वयं से प्रारम्भ होता है लेकिन हम कब और कैसे किसी और की चालसे मोहित हो कर
अपनी चाल को भूल जाते हैं , इसका पता तक नहीं चल पाता, बश यही हम सब की भूल है ।
कर्म एक दरिया है जिसमें कामना रहित ब्यक्ति प्यार की डोर को पकड़ कर गंगा सागर तक की यात्रा
कर सकता है लेकिन गुण करनें दे तब न । हमें पग-पग पर गुणों की हवा से बोध मय रहना पड़ता है और तब
एक दिन गंगा सागर का दर्शन होता है ।
कर्म वह माध्यम है जो सब को मिला हुआ है , कर्म रहित होना असंभव है और कोई कर्म , दोष रहित भी नहीं होता ।
कर्म से सिद्धि मिलती है जो परा-भक्तिके द्वार को खोलती है और कहती है .....जा अब तेरे को किसी सहारे की जरुरत नहीं । कर्म में उन तत्वों को जानना , योग है जो तत्त्व मन को अस्थिर बनाते हैं और वही तत्त्व भोग तत्त्व या
गुण-तत्त्व हैं ।
वह कर्म योग है जिसमें ----
मन बंधन मुक्त हो , बुद्धि स्थिर हो और किसी भी प्रकार की कोई चाह न हो ।
सोच अहंकार का प्रतिबिम्ब है जो पग-पग पर साथ रहता है ।
=====ॐ=======
Tuesday, December 15, 2009
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ye sab bakwas kisane bataya hai apko?
ReplyDeleteAAp jarur bidak jaoge ye sunkar ki upar jo apne gyan baghara hai use mai bakwas kah raha hu?
Agar yatharth me aap isako bakwas samajh gaye to hi "Satya-Darshan" hoga