काम-क्रोध योग के द्वार को बंद करते हैं ----गीता-5.22
* क्या गुण योग के शत्रु हैं ? ---जी , नहीं ......
* गुणों के भावों का सम्मोहन , योग के द्वार को बंद करता है ।
* काम - क्रोध का सम्मोहन योग में अवरोध हैं ।
** सम्मोहन रहित काम , योग का फल है [गीता - 7.11, 10.28 ]
गीता के श्लोक 5.22 को समझनें के लिए हमें गीता के निम्न सूत्रों को समझना चाहिए -------
## 2.62 - 2.63 , 3.36 - 3.43 , 4.10 , 526 , 6.27 , 7.11 , 10.28 , 16.21
गीता में अर्जुन का तीसरा प्रश्न है ----
मनुष्य पाप क्यों करता है ?
परम श्री कृष्ण कहते हैं ........
काम का सम्मोहन मनुष्य से पाप करवाता है । क्रोध , काम का रूपांतरण है और काम , राजस गुण का
प्रमुख तत्त्व है ।
अब आप सोचिये की ----
यदि काम , क्रोध , लोभ,मोह , ममता , भय, अहंकार न होते तो मनुष्य कैसा होता ?
यदि दुःख न होता तो सुख को कौन समझता ?
यदि मोह न होता तो आँखों में आशू कैसे भरते ?
यदि भोग न होता तो योग शब्द का क्या होता ?
पांचवी शताब्दी में पल्लव - राजाओं का एक राजकुमार चीन,जापान जाकर झेन साधना का एक नया मार्ग चलाया जिसको आज लोग एक मात्र जीवित धर्म मानते हैं , इस राजकुमार का नाम था बोधी धर्म ।
शरीर छोड़ते समय इनका कहना है ------
शरीर तेरा धन्यबाद , यदि तूं न होता तो आत्मा को कैसे, मैं समझता ? , पाप तेरा धन्यबाद , यदि तू न होता तो, मैं पुण्य को कैसे समझता ? और भोग तेरा धन्यबाद , यदि तूं न होता तो, मैं योग को कैसे समझता ?
गुणों के सम्मोहन ऐसे हैं जो एक माध्यम हैं , जिनको समझ कर मनुष्य योगी बनता है और योग, प्रभु के द्वार को दिखा कर कहता है ---अब तूं जा आगे, जहां तेरे को वह आयाम मिलेगा जिस से एवं जिस में यह संसार हैं ।
काम एक उर्जा है जो मूलतः विकार रहित है लेकिन जब इसे संसार की हवा लगती है तब यह सविकार हो जाती है और संसार में डुबो देती है ।
=====ॐ=====
Monday, December 21, 2009
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