Friday, December 25, 2009

गीता ज्ञान - 34

योगारूढ़-योगी कौन है ?----गीता..6.4

योगारूढ़- योगी वह है जो ---
[क] अनासक्त हो
[ख] संकल्प रहित हो

गीता महाभारत का आइना है लेकिन कुछ लोग महाभारत की कथाओं में गीता को देखते हैं जो एक असंभव
बात है । अभी-अभी मुझे किसी मित्र का सुझाव मिला है ----तूम यह क्या बकबास फैला रहे हो ?
मेरे प्यारे मित्रों ! यहाँ कुछ भी बेकार नहीं है और यदि आप सत को जानना चाहते हैं तो पहले झूठ को जानो
नहीं तो सत आयेगा और चला जाएगा , आप किस आधार पर सत को देखेंगे ?

गीता सूत्र 6.4 के सम्बन्ध में यदि हम गीता के निम्न सूत्रों को देखें तो बात कुछ और स्पष्ट हो जायेगी ----
2.48 , 2.59-2.60 ,3.7 , 3.19 , 3.20 , 3.25 , 3.26 , 4.20 , 4.23 ,
5.10 , 5.11 , 13.8 , 14.7 , 18.6

योगारूढ़ वह स्थिति है जिसमें मन-बुद्धि फ्रेम कोरे कागज़ जैसा होता है जैसे एक शांत झील का पानी और
उस पर जो प्रतिबिंबित होता है वह है परम सत्य ।
आसक्ति गुणों की रस्सी है जो बाधती है ; तीन गुण हैं और तीनों की अपनी-अपनी आसक्तियां हैं । तीन गुणों की
रस्सी हर एक मनुष्य में हर पल रहती है [गीता-14।10], जो इस रस्सियों को समझ कर आगे चलता है , वह है
योगी और जो इनको नहीं पहचानता , वह है , भोगी ।
इन्द्री - बिषय के मिलन से मन के अन्दर आसक्ति बनती है , आसक्ति संकल्प की जननी है और संकल्प से
कामना बनती है । जब कामना टूटती है तब क्रोध पैदा होता है --यह है सीधा गीता का समीकरण ।

गीता को गीता में खोजिये , इसको आप महाभारत में भी पा सकते हैं लेकिन खोजनें वाली आँख होनी चाहिए ।
गीता हर पल हमारे संग है लेकिन इसको कौन देखना चाहता है क्यों की -----
यहाँ सब की आँखों पर ......
भोग का चश्मा लगा है ।

====ॐ====

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