सम - भाव की स्थिति प्रभु का द्वार है ----गीता...5.19
गीता का सूत्र आप से क्या कह रहा है ? सोचिये इस बात पर और अपनी सोच को उस उचाई तक ले जाइए
जिसके आगे राह न हो ।
सम भाव को समझनें के लिए देखिये गीता के इन श्लोकों को -------
2.47-2.51, 2.56-2.57, 2.69-2.71, 4.22, 5.3, 5.18-5.20, 6.8-6.9, 6.19,
12.13-12.17, 14.19, 14.23-14.25, 16.1-16.3, 18.10, 18.17, 18.51-18.55
सम भाव योगी कौन है ?
आसक्ति,काम,कामना,क्रोध,लोभ,मोह,भय एवं अहंकार से अप्रभावित ब्यक्ति , सम भाव योगी है ।
चार अक्षरों वाला यह शब्द अपनें में अनेक परतो को छिपाए हुए है , एक-एक परत को उठाते जाइए और
सम भाव में प्रवेश करते जाइये , यह होगी गीता - साधना ।
गीता आप को कोई नयी बात नहीं बताता , हम-आप जो करते हैं उनको लेकर गीता बोध पैदा करना चाहता है ।
हमारी अपनी कमजोरी है , हम बनना चाहते हैं परमात्मा लेकिन कुछ छोड़ना नहीं चाहते और यही आदत
हमें न परमात्मा बननें देती और न पशु की तरह भोग में रहनें देती ।
मनुष्य न तो पशु है और न ही परमात्मा लेकिन इसके अन्दर वह सब है जो परमात्मा मय बनाते हैं ।
गीता परमात्मा से मिलाता तो नहीं लेकिन परमात्मा तुल्य बना देता है यदि इसके मार्ग पर चला जाए ।
====ॐ====
Saturday, December 19, 2009
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