कर्मण्यकर्म यः पश्येदकर्मणि च कर्म य: । ----गीता श्लोक ...4.18
गीता का यह श्लोक कहता है -----
जो कर्म में अकर्म एवं अकर्म में कर्म देखता है , वह सभी कर्मों को कर सकता है और वह बुद्धिमान है ।
गीता - बुद्धि योग के फल को यह श्लोक बता रहा है , बुद्धि योग का प्रारम्भ संदेह से है और अंत श्रद्धा में
होता है । संदेह रहित बुद्धि ही चेतना है जो यह महशूश कराती है की इस ब्रह्माण्ड का भी कोई नाभि केन्द्र [nucleous] है , जिसके फैलाव के रूप में यह ब्रह्माण्ड एवं टाइम-स्पेस फ्रेम है । मन-बुद्धि ज़ब चेतना से भर जाते हैं तब वह योगी कस्तूरी मृग जैसा हो जाता है , वह ! वह कटी पतंग की तरह होता है जिसको पता रहता है की वह कहाँ और कैसे जा रहा है ?
अब आप गीता को देखें ---गीता यहाँ अध्याय चार में कर्म-अकर्म की बात कर रहा है और कर्म की परिभाषा अध्याय आठ के प्रारम्भ में देता है फ़िर अर्जुन कैसे यहाँ अध्याय चार में कर्म-अकर्म को समझ सकते हैं ?
गीता सूत्र 8.3 में कहता है ------
जिसके करनें से भावातीत की स्थिति मिले , वह कर्म है लेकिन हम-आप कर्म की क्या परिभाषा करते हैं ?
गीता कहता है -----------
गुणों के प्रभाव से होनें वाले सभी कर्म अकर्म हैं चाहे वे यज्ञ हों या भोग हों । राम काम बन जाता है यदि भक्ति गुणों के प्रभाव में हो रही हो और काम राम बन जाता है यदि वह काम वासना रहित हो [गीता - 7।11 ] ।
कौन कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म देखता है ?
समत्व-योगी [ गीता सूत्र 2.47-2.51, 18.49-18.50 ] कर्म में अकर्म एवं अकर्म में कर्म देखता है जो द्रष्टा होता है । समत्व-योगी कौन है ? जिसको गुन तत्वों की पकड़ प्रभावित नहीं कर पाती , वह समत्व योगी है ।
समत्व-योगी भोग संसार में कमलवत होता है और उसका केन्द्र परमात्मा होता है ।
गीता कहता है -----
कामना एवं मोह अज्ञान की जननी हैं , अज्ञान भोग का उर्जा - श्रोत है जिसको सहयोग मिलता है अहंकार से ।
सात्विक , राजस एवं तामस गुणों के तत्वों के प्रभाव में कोई ब्यक्ति कर्म - अकर्म को नहीं समझ सकता ,गीता कहता है ---तुम मन्दिर जाते हो - उत्तम है लेकिन यदि किसी कारण से तेरा जाना है तो वह दो कौड़ी का जाना है , तूं इस दो कौड़ी को कुबेर का खजाना बना सकते हो यदि तुम अपनी चाह को समझ जावो ।
बंधन बंधन है चाहे वह सोने की चेन का हो या रस्सी का हो , चाह , मोह , अहंकार ये सभी बंधन हैं जो
ऊपर नहीं जानें देते , नीचे की ओर खीचते रहते हैं ।
भोग में भोग तत्वों को समझाना , गीता का गुन -विज्ञानं है ।
====ॐ=======
Sunday, December 6, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
bahut hi achhi jaankaari baant rahe hain aap
ReplyDelete