Wednesday, February 3, 2010

गीत ज्ञान - 66

उसे तो जानो जहां हो ?

हम जिसमें हैं , हमनें जिसका नाम करण किया , जो हमारे चारों ओर है , जिसमें हमारा आदि - वर्तमान एवं अंत है , उसको जाननें के लिए हम कितनें उत्सुक हैं ? इस प्रश्नों को आप अपनें से पूछें और वह है - संसार ।
गीता कहता है [ गीता - 15.1 - 15.3 तक ] ......वह जिसका कोई आदि - अंत नहीं है , वह जो सनातन है , वह जिसकी स्थिति अच्छी तरह से नहीं है , वह जो तीन गुणों से परिपूर्ण है , वह जिसमें अपरा - परा , दो प्रकृतियाँ हैं , वह जो अपनें में निर्विकार एवं सविकार तत्वों को धारण किये हुए है , जिसको वह जानता है -- जो बैरागी है , उसका नाम
है ---संसार ।

संसार को वह समझता है जो ------
[क] माया को समझता है --गीता ...7.14 - 7.15
[ख] अपरा - परा प्रकृतियों को समझता है -- गीता ...7.4 - 7.6, 13.5 - 13.6, 14.3 - 14.4,
[ग] क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ को जानता है --गीता ..13.1 - 13.3
और जो आत्मा - परमात्मा को समझता है ।
वह कौन है जो ऊपर बताई गयी बातों को जानता है ? वह है --बैरागी और बैरागी तब मिलता है जब ----
खोज तन से नहीं , ह्रदय से होती है और ऐसे लोग दुर्लभ होते हैं - गीता ..6.42, 7.3, 7.19, 12.5, 14.20

हमारा काम है यह बताना की गीता में क्या और कहाँ है ? उसकी खोज आप के हाथ में है ।

====ॐ=====

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