Friday, February 19, 2010

गीता ज्ञान - 82

गीता श्लोक - 18.24 - 18.27 तक

राजस कर्म को समझो
गीता कहता है ---गुणों के आधार पर तीन प्रकार के लोग हैं और उनका कर्म - ज्ञान सब का अपना - अपना है [ गीता - 18.19 ] लेकीन यहाँ पर हम राजस कर्म को समझें की कोशिश कर रहे हैं ।
गीता की बात - कर्म तीन प्रकार का होता है , यह बात आपनें देखी, अब गीता की इन बातों को भी देखिये ---
[क] करता - भाव अहंकार से आता है ....गीता -3.27
[ख] जो भावातीत में पहुंचाए , वह कर्म है ....गीता - 8.3
[ग] जिससे क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ का बोध हो , वह ज्ञान है ....गीता - 13.2
अब आप इनको समझनें के बाद गीता श्लोक - 18.19 की बात को समझनें की कोशिश करें की कर्म कैसे तीन प्रकार का होता है ?
राजस गुण को समझनें के लिए आप गीता के निम्न श्लोकों को देखिये -----
3.37 - 3.43, 4.10, 5.23, 5.26, 7.11, 6.27, 14.7, 14.9, 14.10, 14.12
गीता कहता है [ गीता - 6.27 ] ---राजस गुण प्रभु के मार्ग का सबसे बड़ा अवरोध है , जिसका प्रमुख तत्त्व है - काम , काम के रूपांतरण हैं - कामना , क्रोध एवं लोभ । मनुष्य काम के सम्मोहन में पाप करता है ।
काम का सम्मोहन बुद्धि तक होता है लेकीन जो आत्मा केन्द्रित है उस पर काम का असर नहीं होता ।
ऐसे कर्म जिनमें काम , अहंकार , कामना , लोभ , बासना , राग , रूप , रंग जैसे भाव छिपे हो उनको राजस कर्म कहते हैं ।
गीता कहता है --- तुम यदि राजस कर्म में रस ले रहे हो तो लो लेकीन यह देखनें की कोशिश करो की यह रस कितना सुख - दुःख दे रहा है और इस से तुम कितनी देर तक तृप्त रहते हो ? क्षणिक सुख जिसमें दुःख का बीज हो क्या उसे सुख कह सकते है ? गीता सुख - दुःख को भी तीन प्रकार का बताता है ।
गीता इशारा करता है की जो है उसको जाननें की कोशिश करते रहो और ऐसा करते रहनें से एक दिन तुम स्वयं राजस कर्म से सात्विक कर्म में पहुँच जाओगे । सात्विक कर्म में पहुंचा ब्यक्ति केवल अहंकार से नीचे गिरता है , जो अहंकार को समझ कर आगे चलता है वह एक दिन गुनातीत में पहुच कर परम आनंदित हो उठता है ।
आप क्या सोच रहे हैं , है उम्मीद की आप भी परम आनंद रस पीना चाहते हैं ?

=====ॐ==========

No comments:

Post a Comment

Followers