सुख तीन प्रकार के होते हैं ---गीता - 18.36 - 18.39
गीता कहता है - सुख तीन प्रकार का होता है लेकीन यह नहीं बताता की दुःख कितनें प्रकार का होता है ?
राजस गुण को समझनें के लिए आप देखें गीता सूत्र - 14.7, 14.9, 14.10, 14.12, 6.27, 4.10, 7.1116.21, 3.37 - 3.43, 5.23, 5.26 और सात्विक गुण के लिए आप देखें गीता - 14.6, 14.9 - 14.10 एवं तामस के लिए देखिये गीता - 14.8, 14.9, 14.10, 14.17, 18.72 - 18.73, 2.52, 4.10 सूत्रों को ।
गीता कहता है इन्द्रिय सुख में दुःख का बीज होता है और जो बिषय - इन्द्रिय के सहयोग से हो उसमें गुणों का प्रभाव तो होता ही है और वह यातो राजस कर्म होगा या तामस जिनका फल क्षणिक सुख तो देता है लेकीन उस सुख में दुःख का बीज होता है ---देखिये गीता सूत्र - 2.14, 5.22, 18.38 को इस सम्बन्ध में ।
जुंग और फ्रायड कहते हैं ---मनुष्य दुःख को छोड़ना नहीं चाहता और सुख की खोज उसे चैन से रहनें नहीं देती -
यह सुख - दुःख का खिचाव मनुष्य के तन्हाई का कारण है ।
ज़रा आप समाज में निगाह डालना - यहाँ कितने लोग सुखी हैं और कितनें लोग दुःख नहीं चाहते ? कोई दुःख नहीं चाहता लेकीन सुखी भी कोई नहीं है तभी तो नानक जी कहते हैं -----
नानक दुखिया सब संसार ।
गीता कहता है --छोडनें या पकडनें की चाह को समझो - दोनों में कोई अंतर नहीं है एक की दिशा एक तरफ है तो दूसरी की दिशा दूसरी ओर है - चाह चाह है जो प्रभु से दूर रखती है , चाह के साथ रहते हुए सम भाव में पहुँचना ही गीता की साधना है जिसको गीता समत्व योग की संज्ञा देता है ।
काम का दुःख , कामना का दुःख , लोभ का दुःख , भय का दुःख , मोह का दुःख , अहंकार का दुःख सभी दुःख अलग - अलग हैं लेकीन सब की जड़ें एक से हैं जो न सुख है न दुःख है । गीता कहता है गुण मन में भाव पैदा करते हैं , भाव मनुष्य से कर्म करवाते हैं और कर्म का फल जब चाह के अनुकूल होता है तब सुख मिलता है एवं जब फल प्रतिकूल होता है तब दुःख का अनुभव होता है लेकीन ये भाव जहां से उठते हैं वह भावातीत है जिसको प्रभु कहते हैं अतः प्रभु के परम प्यार में डूबा न सुखी होता है और न दुखी लेकीन होता है -
परम - आनंद में ।
आप गीता से क्या चाहते हैं ? अर्जुन की तरफ भ्रम में ही रहना चाहते हैं या सब के परे की उड़ान भरना
चाहते हैं ?
मन - बुद्धि से परे की उड़ान का नाम है ----
गीता और इस समय आप जहां है , वह है ----
गीता - मोती
=====ॐ=======
Monday, February 22, 2010
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