गीता श्लोक - 15.7
गीता सूत्र कहता है ----
जीवों में सनातन जीवात्मा मेरा अंश है जिसकी ऊर्जा से मन - पांच ज्ञानेन्द्रियाँ प्रकृति से जुड़ते हैं ।
अब हम गीता रहस्य में चलते हैं , गीता कहता है ......
[क] प्रभु मनुष्य के ह्रदय में है --गीता ....10.20, 13.17, 15.15
[ख] आत्मा मनुष्य के ह्रदय में है --गीता ....10.20, 15.11
[ग] आत्मा परमात्मा है --गीता ....10.20, 15.7, 13.22
अब आप आत्मा - परमात्मा को अपनें ह्रदय के माध्यम से ध्यान के जरिये जाननें की कोशिश करें ।
जमींन के अन्दर जनेवा में [ CERN] वैज्ञानिक वह परिक्षण कर रहे हैं जिससे वह परिस्थित जानी जा सके जो बिग - बैंग के समय थी और जिस घटना के कारण टाइम स्पेस एवं ब्रह्माण्ड की रचना हुयी थी । जीव, विज्ञान की कल्पना में, उस घटना का फल है । Dr. Holger B. Nielsen , Dr. Masao Nimomiya कहते हैं --
प्रकृति इस प्रयोग को सफल नहीं होनें देना चाहती क्योंकि यह परिक्षण बार - बार असफल हो रहा है । वैज्ञानिक इस परिक्षण से अप्रत्यक्ष रूप में आत्मा को प्रयोगशाला में बनाना चाह रहे हैं --चलो अच्छा है , देखते हैं इनका परिक्षण क्या गुल खिलाता है ? गीता में जीवात्मा या आत्मा को समझनें के लिए आप गीता के इन सूत्रों को एक साथ देखें ------
2.18 - 2.30, 10.20, 13.32 - 13.33, 14.5, 13.22, 15.7 - 15.8, 15.11
यहाँ आप को आत्मा का जो रूप दिखेगा वैसा रूप विज्ञान के पास नहीं है -- गीता का आत्मा न तो कण है और न ही लहर --यह प्राण ऊर्जा का श्रोत है , स्थिर है , कुछ करता नहीं , द्रष्टा है , जो रूपांतरित नहीं होता , जो विभाजित नहीं होता , जो टाइम स्पेस से प्रभावित नहीं होता और जो सनातन है । आत्मा मनुष्य के शरीर में मनुष्य को जीवित होनें का माध्यम है , जिसके न होनें पर मनुष्य का शरीर मुर्दा हो जाता है ।
जीवात्मा कल एक रहस्य था , आज एक रहस्य है और कल भी एक रहस्य ही रहेगा ।
विज्ञान की खोज जरुर कुछ देगी लेकीन वह आत्मा नहीं कुछ और ही होगा ।
=====ॐ=====
Friday, February 5, 2010
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