Tuesday, February 9, 2010

गीता ज्ञान - 71


गीता श्लोक - 14.21
इस सूत्र में अर्जुन अपना चौदहवां प्रश्न कर रहे हैं , अर्जुन गुनातीत योगी की पहचान जानना चाहते हैं ।
गीता में परम के 556 श्लोकों में से 408 श्लोकों को सुननें के बाद अर्जुन यह प्रश्न कर रहे हैं --इस बात को समझनें की जरुरत है ।
परम इसके पहले समभाव - योगी [गीता 2.11, 2.47 - 2.51 तक ], स्थिर - बुद्धि योगी [ गीता 2.55 - 2.71 तक ],कर्म - योगी [गीता अध्याय - 3 - 6 तक ], साँख्य- योगी [गीता अध्याय -7 एवं 13 ], और अब गुनातीत योगी के सम्बन्ध में बता रहे हैं ।
परम गीता में आत्मा - परमात्मा , कर्म , योग , भोग - तत्त्व , योग कर्म , कर्म संन्यास , बैराग्य , ज्ञान , प्रकृति - पुरुष सम्बन्ध , गुण तत्त्व , क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ सम्बन्ध - सब कुछ बता चुके हैं लेकीन अर्जुन की भ्रमित बुद्धि कहीं रुकती नहीं है । अर्जुन परम की बातों को सुनते नहीं हैं , उनकी बातों में प्रश्न खोजते हैं - यह है - भ्रमित बुद्धि वाले ब्यक्ति की पहचान ।
गुनातीत की अवस्था पानें वाला योगी अपनें शरीर को तीन हप्तों से अधिक दिनों तक नहीं संभाल सकता , वह अपनें शरीर को धन्यबाद करके त्याग देता है ।
गीता कहता है [ गीता सूत्र - 14.5 ] --आत्मा को तीन गुण शरीर के अन्दर रोक कर रखते हैं अर्थात गुनातीत योगी के आत्मा को शरीर में रोकनें वाले बंधन -- तीन गुण जब सुसुप्त हो जाते हैं तब वह समाधि के माध्यम से अपनें शरीर को छोड़ देता है ।

====ॐ======

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