गीता श्लोक - 17.4
गीता का यह श्लोक तीन प्रकार के पूजकों की बात कर रहा है ; सूत्र कहता है -----
सात्विक गुण केन्द्रित ब्यक्ति देवों को , राजस गुण केन्द्रित ब्यक्ति राक्षसों को एवं तामस गुण वाले लोग
भूत - प्रेतों को पूजते हैं ।
गीता की यात्रा है -----
[क] भोग से योग की
[ख] कर्म से अकर्म की
[ग] गुणों से निर्गुण की
[घ] योग से बैराग की
[च] बैराग्य में ज्ञान की
[छ] ज्ञान में आत्मा - परमात्मा की
गीता गणित बताती है ......
तीन प्रकार के गुण हैं , तीन प्रकार के लोग हैं [गीता - 14.5 ] , उनका अपना - अपना कर्म [ गीता - 18.19,18.23 - 18.26 ] हैं और उन सबका अपना - अपना तप , यज्ञ , पूजा , प्रार्थना आदि सब हैं ।
गीता कहता है - तुम जहां हो उस को जानो , उसे जान कर आगे बढ़ो और धीरे - धीरे तुम समझ जाओगे की ---
तेरी यात्रा क्या है ? तुम किधर से किधर की ओर जा रहे हो ? और अंततः तेरे को पता चल जाएगा की ---
गुणों के बंधन तेरे को कैसे बाँध रक्खे थे और तूं गुलामी की जिंदगी में अपने आदि श्रोत से क्यों दूर होनें से
सब कुछ होते हुए भी अतृप्त क्यों था ?
गीता योगी दुर्लभ योगी होते हैं जिनको खोजनें का केवल एक तरीका है - गीता में अपनें को रखना ।
====ॐ======
Friday, February 12, 2010
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