भोगी का अंत कैसा होता है ?
यहाँ इस सन्दर्भ में गीता के कुछ श्लोक दिए जा रहे हैं , आप इन श्लोकों को देखें , समझें और मनन करें ।
15.8, 10.22, 8.6, 14.5, 2.45, 3.27, 3.33, 14.19, 14.23
अब आप इन श्लोकों के भावार्थ को देखें ------
[क] श्लोक - 15.8......
जब आत्मा शरीर त्यागता है तब उसके साथ मन - इन्द्रियाँ भी होती हैं ।
[ख] श्लोक - 10.22.....
श्री कृष्ण कहते हैं .....इन्द्रियों में मन मैं हूँ ।
[ग] श्लोक -8.6....
मनुष्य के जीवन में जो भाव उसका केंद्र होता है , वह मनुष्य अंत समय में उस भाव से भावित हो कर शरीर को छोड़ता है और वही भाव उसकी अगली योनी को तय करता है ।
[घ] श्लोक - 14.5.....
शरीर में तीन गुण आत्मा को रोक कर रखते हैं ।
[च] श्लोक - 14.10......
हर मनुष्य में तीन गुणों का हर पल बदलता एक समीकरण होता है जो मनुष्य के जीवन को प्रभावित करता रहता है ।
[छ] श्लोक - 2.45, 3.27, 3.33......
गुण कर्म करता हैं और ऐसे सभी कर्म भोग - कर्म होते हैं ।
[ज] श्लोक - 14.19, 14.23.......
जो गुणों को करता देखते हैं वे साक्षी एवं द्रष्टा भाव में परम मय होते हैं ।
गीता के दस श्लोक आप में कौन सा भाव पैदा करेंगे , यह मैं नहीं जानता लेकीन जब आप इनको अपनाएंगे तो आप को कुछ ऐसा प्रतीत होगा -----
** भोगी अंत समय में मौत से संघर्ष करते हुए समाप्त होता है और योगी मौत से मित्रता रखता है ।
** भोगी अमरत्व की दवा खोजते - खोजते आखिरी श्वास भरता है और योगी अमरत्व में जीता है ।
=====ॐ=====
Friday, February 5, 2010
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