गीता अध्याय - 16 का सारांश
गीता अध्याय 16 में कुल 24 श्लोक हैं और यह अध्याय अर्जुन के प्रश्न 14 के सन्दर्भ में है ।
श्री कृष्ण कहते हैं ....मनुष्य दो श्रेणियों में बिभक्त किये जा सकते हैं ; आसुरी स्वभाव वाले और दैवी स्वभाव वाले । दैवी प्रकृति वालों के जीवन का केंद्र - परमात्मा होता है और आसुरी प्रकृति वालों का जीवन भोग केंद्र के चारों ओर घूमता रहता है । दैवी प्रकृति वालों के लिए देखिये गीता सूत्र - 16.1- 16.3, 16.5, 9.13
और आसुरी प्रकृति वालों के लिए देखिये सूत्र - 16.4, 16.7 - 16.20, 9.12 को ।
गीता कहता है - आसुरी प्रकृति के लोग राजस - तामस गुणों के छाया में अहंकार की ऊर्जा से जीवन जीते हैं और
दैवी प्रकृति के लोग परमात्मा की श्रद्धा में जीते हैं ।
आसुरी प्रकृति के लोग स्वयं को करता समझते हैं और प्रभु को भी भोग प्राप्ति के लिए प्रयोग करते हैं ।
आसुरी प्रकृति के लोग मंदिर को अपना घर समझते हैं और दैवी प्रकृति के लोग अपनें घर को भी मंदिर की
तरह रखते हैं । आसुरी प्रकृति के लोगों के माथे का पसीना कभी सूखनें नहीं पाता और दैवी प्रकृति वालों के माथे पर कभी पसीना आता ही नहीं है ।
=====ॐ======
Thursday, February 11, 2010
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