Friday, February 12, 2010

गीता ज्ञान - 74

गीता क्या कह रहा है ?

गीता श्लोक - 17.2 - 17.3, 17.4 - 17.14, 18.4, 18.19, 18.36, 18.41 कहते हैं -----
गुणों के आधार पर श्रद्धा , पूजक, भोजन , यज्ञ , तप , त्याग , ज्ञान , कर्म , मनुष्य , बुद्धि - ध्रितिका , सुख , स्वभाव --सब कुछ तीन प्रकार के होते हैं लेकीन [गीता सूत्र - 4.13, 18.41 ] जातिया चार प्रकार की हैं --- यह कैसी बात है ?
अब आप देखिये गीता सूत्र - 3.27 , 3.33 , 18.59 - 18.60 को -----
गीता यहाँ कह रहा है ---तीन गुणों से स्वभाव बनता है , स्वभाव से कर्म होते हैं । गीता यह भी कहता है [गीता सूत्र - 4.13 , 18.41 ] ---गुण , स्वभाव एवं कर्म के आधार पर चार प्रकार की जातियां बनाई गयी हैं । अब आप गीता सूत्र - 8.3 को देखिये - सूत्र कहता है ---अध्यात्म मनुष्य का स्वभाव है और कर्म वह है जो भावातीत में पहुंचाए ।
तीन गुणों का एक समीकरण हर मनुष्य में हर पल रहता है [ गीता - 14.10 ] जो हर पल बदलता रहता है , गुणों के प्रभाव में आ कर मनुष्य कर्म करता है , कर्म - स्वभाव एवं गुण समीकरण के आधार पर जातियां बनाई गयी हैं तो क्या गीता अपनें में बिरोधाभास छिपाए हुए है ? जी नहीं - कोई बिरोधाभाश नहीं है ।
गीता एक अनंत - यात्रा है जिसमें अनेक मार्ग हैं - ऐसा प्रतीत होता है लेकीन एक निश्चित दूरी के बाद सभी मार्ग मिल जाते हैं और उस स्थिति का नाम है - बैराग्य । बिराग्य में ज्ञान मिलता है जिस से क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ का बोध होता है जहां न गुण होते हैं , न जातियां होती हैं , और स्वभाव जो होता है वह होता है - अध्यात्म जिसमें योगी कर्म में अकर्म देखता है और अकर्म में कर्म देखता है ।
गीता भ्रमित बुद्धि को भ्रम रहित- भ्रम से करता है अतः गीता पढनें से भ्रम तो होगा लेकीन जो पढ़ना नहीं छोड़ते , उनकी बुद्धि स्थीर हो कर परमानंद में पहुंचाती है ।

=====ॐ=====

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