Friday, February 26, 2010

गीता ज्ञान - 89

नैष्कर्म्य - सिद्धि का द्वार है - आसक्ति

गीता श्लोक - 18 . 49 कहता है ........
स्पृहा एवं आसक्ति रहित बुद्धि वाला सन्यासी है और वह निष्कर्मता की सिद्धि वाला होता है ।
गीता बुद्धि - योग का विज्ञान है अतः इसके हर शब्द का सही अर्थ समझना ही गीता की साधना है ।
गीता में स्पृहा , आसक्ति , ध्रितिका , कामना ऐसे कुछ नाजुक शब्द हैं जिनका एक दुसरे से सन्निकट का सम्बन्ध है अतः इनको समझ कर आगे चलना ही उत्तम होगा । इन्द्रिय , मन , बुद्धि में बहनें वाली एक ऊर्जा है । जब इन्द्रियाँ अपनें - अपनें बिषयों में पहुंचती हैं तब उस बिषय पर मन मनन करनें लगता है ।
मनन के फलस्वरूप मन - बुद्धि तंत्र में जो ऊर्जा होती है , उसे स्पृहा कहते हैं , यह ऊर्जा उस बिषय के सम्बन्ध में उत्सुकता पैदा करती है । स्पृहा का गहराना आसक्ति है जो कामना की जननी है । कामना , संकल्प , विकल्प , क्रोध , लोभ एवं अहंकार का सीधा संबध कामना से है । कामना टूटनें का भय , क्रोध पैदा करता है ।
आसक्ति , कामना , क्रोध एवं लोभ राजस गुण के मुख्य तत्त्व - काम के रूपांतरण हैं और राजस गुण प्रभु - मार्ग का एक बड़ा अवरोध है - यहाँ देखिये गीता श्लोक - 2.62 - 2.63, 6.27, 3.37 - 3.43, 18.33, 18.35 को ।

गीता कहता है बिना असत्य के तुम सत्य को पकड़ नहीं सकते , बिना भोग के तुम योग को समझ नहीं सकते और यदि भोग के प्रति तेरे में होश का जागरण हो जाए तो तुम भोगी से योगी बन कर परम आनंद का मजा ले सकते हो [ गीता सूत्र - 5.3, 5.6, 6.1 ] , गीता आगे कहता है -- कर्म का त्याग तो संभव नहीं है क्यों की कर्म करता तुम नहीं , गुण हैं [ गीता सूत्र - 3.5, 18.11, 2.45, 3.27, 3.33 ] और बिना कर्म
किये निष्कर्मता की सिद्धि भी नहीं मिल सकती , अतः कर्म तो करना ही है , बश एक काम करो की कर्म तुझे बाँध न सकें । कर्म जब किसी बंधन के बिना होनें लगते हैं तो इस को गीता कहता है -----
कर्म में अकर्म की अनुभूति और अकर्म में कर्म की अनुभूति जो निष्कर्मता की सिद्धि का द्वार है और यह तब संभव होता है जब कर्म में आसक्ति न हो । आप ऊपर दी गई बातों के लिए गीता के निम्न सूत्रों को देख सकते हैं।
4.18, 4.20, 4.21, 18.6, 18.9, 18.11, 18.12, 6.2, 6.4, 5.6, 5.10, 18.10

कर्म के बिना - कर्म योग नहीं ......
कर्म - योग बिना ज्ञान नहीं ..........
ज्ञान बिना क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ का बोध नहीं ......
देह , आत्मा - परमात्मा के बोध बिना ....
परम आनंद नहीं ।

====ॐ======

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