Monday, February 15, 2010

गीता ज्ञान - 79

आत्मा , अशुद्ध बुद्धि एवं करता भाव ---गीता श्लोक - 18.16 - 18.17

यहाँ गीता के दो सूत्रों के आधार पर हम आत्मा , अशुद्ध बुद्धि एवं करता - भाव के सम्बन्ध को समझनें की कोशिश करनें जा रहे हैं ।

गीता सूत्र - 18.16 कहता है .....अशुद्धि बुद्धि वाला आत्मा को करता समझता है - यह एक परम सूत्र है जिसमें आत्मा और अशुद्धि बुद्धि का सम्बन्ध ब्यक्त किया गया है ।

गीता कहता है ...आत्मा अब्यक्त , अचिन्त्य [ गीता - 2.25 ] है , आत्मा देह में ह्रदय में स्थित परमात्मा है [ गीता - 10.20, 13.22, 15.7, 15.11 ], आत्मा देह में सर्वत्र है [ गीता - 2.24, 13.32 ], आत्मा को देह में तीन गुण रोक कर रखते हैं [ गीता - 14.5 ], और देह के न होनें पर आत्मा के साथ मन भी रहता है [ गीता - 15.8 ] , यदि गीता के मर्म को ठीक ढंग से समझा जाए तो यह कहना गलत न होगा की
आत्मा - प्रभु का एक संबोधन है । गीता सूत्र - 2.41, 2.66, 7.10 कहते हैं ---निश्चयात्मिका एवं अनिश्चयात्मिका - दो प्रकार की बुद्धि हो सकती है ; पहला प्रकार है जो योग के फलस्वरूप मिलता है और बुद्धि का दूसरा रूप है - उस ब्यक्ति की बुद्धि का जो भोग को ही परम समझ कर जीता है । विकारारों से भरी बुद्धि है अनिश्चयात्मिका और निर्विकार बुद्धि है - निश्चयात्मिका ।

भोग में डूबा ब्यक्ति आत्मा - परमात्मा को भोग का परम श्रोत समझता है और इनका प्रयोग भोग प्राप्ति के लिए करता है लेकीन योगी भोग से परे इनको देखनें का प्रयत्न करता है ।

गीता सूत्र - 18.17 कहता है .....करता भाव रहित ब्यक्ति पाप रहित होता है । अर्जुन का तीसरा प्रश्न गीता सूत्र - 3.36 के माध्यम से है जिसमें अर्जुन पूछते हैं - मनुष्य न चाहते हुए भी पाप क्यों करता है ?

परम स्पष्ट रूप से कहते हैं - गीता सूत्र - 3.37 - 3.43 तक में - राजस गुण का प्रमुख तत्त्व है काम और काम का सम्मोहन पाप कर्म के लिए प्रेरित करता है । करता भाव अहंकार की छाया है - गीता - 3.27, और करता भाव रहित ब्यक्ति ब्रह्म मय होता है - गीता सूत्र - 3.5 , अब आप देखें की करता भाव क्या है ?

गीता - 14.22 - 14.27 में अर्जुन के चौदहवें प्रश्न के सम्बन्ध में गुनातीत - योगी की बातें बताते हुए परम कहते हैं ---गुनातीत - योगी बुद्ध होता है जो हर पल ब्रह्म से परिपूर्ण होता है ।

शुद्ध बुद्धि वाला गुनातीत - योगी ब्रह्म से परिपूर्ण गुणों को करता देखता हुआ आत्मा केन्द्रित परमात्मा से परमात्मा में रहता हुआ परम आनंद में रहता है ।





====ॐ=====

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