Wednesday, February 10, 2010

गीता ज्ञान - 72


गीता श्लोक - 15.10 - 15.11

श्लोक कहते हैं ......शरीर में जो है , शरीर छोड़ कर जो जाता है , बिषयों को भोगते हुए को , तीन गुणों से युक्त को अज्ञानी यत्न करनें पर भी नहीं समझता और ग्यानी निर्विकार इन्द्रियों वाला , निर्विकार मन वाला हर पल प्रभु से परिपूर्ण होता है । गीता सूत्र - 7.27 कहता है ...इच्छा , द्वेष , द्वन्द एवं मोह रहित ब्यक्ति , ग्यानी होता है ।
गीता सूत्र 5.10 - 5.11 उन पचास श्लोकों में से हैं जिनको परम श्री कृष्ण गुनातीत योगी को स्पष्ट करनें के लिए बोले हैं [ गीता - 14.22 - 16.21 तक ] ।

ज्ञान की परिभाषा गीता सूत्र 13.2 में दी गई है , ग्यानी की पहचान गीता सूत्र 13.7 - 13.11 तक में दी गई है और सूत्र 15.10 - 15.11 में उन्ही बातों को गुनातीत योगी के सम्बन्ध में बताया जा रहा है । गीता सूत्र 15.10 - 15.11 को यदि आप बार - बार पढ़ें तो आप यह मिलेगा ------
वह जो आत्मा - परमात्मा केन्द्रित है , वह जो प्रकृति - पुरुष रहस्य को समझता है , वह जो तन - मन - बुद्धि से विकार रहित है , वह जो संसार को समझता है , वह जो गुणों के रहस्य को जानता है , वह जो यह जानता है की मैं कौन हूँ ? वह ग्यानी है ।
ज्ञानी स्थिर प्रज्ञावाला [ गीता - 2.55 - 2.72 ] , शांत मन वाला , सन्यासी स्वरुप , योगी , बैरागी की तरह संसार में कमल वत रहता है ।

=====ॐ========

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