गीता श्लोक - 18.19 - 18.22 तक
गीता श्लोक - 18.19 कहता है ....गुणोंकी संख्या करनें वाले शास्त्र में ज्ञान , कर्म एवं कर्म - करता तीन प्रकार के होते हैं ।
गीता श्लोक - 18.20 कहता है ....जिससे सभी भूतों को समभाव से परमात्मा में देखा जाए , वह ज्ञान
सात्विक ज्ञान है ।
गीता श्लोक - 18.21 कहता है ... जिससे सभी भूतों को अलग - अलग भावों में जाना जाए , वह ज्ञान राजस
ज्ञान है ।
गीता श्लोक - 18.22 कहता है ... जो देह के ऊपर केन्द्रित करे , वह ज्ञान तामस ज्ञान है ।
अब हम गीता में ज्ञान एवं ग्यानी से सम्बंधित कुछ सूत्रों पर नज़र डालते हैं -----
देखिये गीता सूत्र - 13.2, 13.7 - 13.11, 15.10, 18.19 को एक साथ -----------
यहाँ गीता कहता है ... सम - भाव ब्यक्ति , ज्ञानी है , जिससे क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ का बोध हो , वह ज्ञान है , ज्ञानी
भोगी एवं प्रभु - दोनों को समझता है और गीता सूत्र 18.19 में आकर कह रहा है की ज्ञान तीन प्रकार का होता है ।
कर्म के सम्बन्ध में गीता अध्याय - 3 से अध्याय - 5 तक अनेक बातों को बतानें के बाद अध्याय - 8 के सूत्र - 3 में कहता है -- जो भावातीत में पहुंचाए , वह कर्म है और अध्याय - 18 में आकार कह रहा है की
कर्म तीन प्रकार का होता है ।
प्रोफ़ेसर आइन्स्टाइन कहते हैं ---Information is not knowledge , book knowledge is dead knowledge and alive one comes from the consceousness . आइन्स्टाइन होश को ज्ञान कह रहे हैं और बेहोशी को अज्ञान । गीता कह रहा है तुम अपनें बेहोशी को पकड़ कर होश मय हो सकते हो लेकीन यदि तेरी बेहोशी
तेरे को गुलाम बना लेती है तो तू बेहोशी में ही आखिरी श्वास भरेगा ।
राग से बैराग्य .....
अज्ञान से ज्ञान का मार्ग दिखाता है .....
गीता
====ॐ=====
Tuesday, February 16, 2010
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