Friday, February 19, 2010

गीता ज्ञान - 83

तामस कर्म क्या हैं ?

गीता गुणों के आधार पर तीन प्रकार के कर्मों की बात गीता सूत्र - 18.19 में करता है और गीता सूत्र - 8.3 में
कहता है ....जिसके करनें से भावातीत की स्थिति मिले , वह कर्म है ---इस बात को समझना ही कर्म - योग है ।
तामस कर्म वे कर्म हैं जिनको मोह , भय या आलस्य के कारण किया जाता है ।
साधना के दो मार्ग हैं -- सब को स्वीकारना या सब को नक्कारना ; अष्टबक्र एवं उपनिषद् सब को नकारते हैं और अंत में जो मिलता है वह सत होता है लेकीन गीता समभाव का विज्ञान देते हुए कहता है ----
जो है उसे स्वीकारो , उससे मित्रता स्थापित करो , उसके विज्ञान को समझो , उसकी समझ तेरे को सत में पहुंचाएगी । सत भावातीत है - गीता सूत्र - 2.16, और गुण आधारित कर्म भावों के अधीन हैं अतः गुण आधारित कर्मों की समझ ही भोग कर्म को कर्म - योग में बदल सकती है ।
तामस गुण को यदि आप समझना चाहते हैं तो देखिये गीता सूत्र - 2.52, 14.8, 14.17, 18.25, 18.28,18.72 - 18.73 को ।
गीता कहता है ---भय से मुक्त होनें के लिए कुछ लोग भूतों को पूजते है [ गीता - 17.41 ] , कुछ लोग देवताओं को पूजते हैं [गीता -3.12, 4.12, 7.16 ] और यह भी कहता है - मोह के साथ बैराग्य नहीं मिलता , बिना बैराग्य संसार का बोध नहीं होता [ गीता - 15.3 ], बिना संसार के बोध के परमात्मा का बोध होना संभव नहीं ।
गीता कहता है - राजस एवं तामस गुणों के प्रभाव में जो कर्म तुम कर रहे हो वे तेरे पाठशाला हैं , उनको तुम पढो और आगे दूसरी पाठशाला तेरा इंतज़ार कर रही है - बश कही उनमें रुक न जाना ।
जो कुछ भी है सब प्रभु से प्रभु में ही तो है बश हमको अपना रुख बदलना है जो किसी भी समय बदलेगा ही - आज नहीं तो कल , इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में सही ।
जो करो पूरी श्रद्धा से करो , प्रभु को केंद्र में रख कर करो , प्रभु को अर्पित हो कर करो , यह करता भाव
तेरे को एक दिन द्रष्टा बना देगा ।
चाह एवं अहंकार रहित पूर्ण समर्पण से किया गया कर्म , प्रभु से जोड़ता है ।

=====ॐ========

No comments:

Post a Comment

Followers