Saturday, February 6, 2010

गीता - ज्ञान ...69

असत्य की छाया में ------

[क] अहम् ब्रह्मास्मि ......
[ख] ब्रह्म सत्यं जगत मिथ्या ....
[ग] अनल हक .......

ऊपर की दो बातों को कहनें वाले आदि शंकराचार्य हैं और
तीसरी बात कहते हैं ------
औलिया मंसूर

कौन कहता है --मैं ब्रह्म हूँ , मैं सत्य हूँ ---यह बात वही कह सकता है जिसको पता हो की - ब्रह्म क्या है ? सत क्या है ? बोधी धर्म भारत से चीन जा कर वहाँ के ताओ मान्यता के साथ मिल कर एक नया मार्ग --झेंन बनाया बोधी धर्म अंत समय में कहते हैं ---
देह तेरा धन्यबाद , यदि तूं न होता तो आत्मा को मैं कैसे जान सकता था ?
संसार तेरा धन्यबाद , यदि तूं न होता तो मैं ब्रह्म को कैसे समझ सकता था ?
पाप तेरा धन्यवाद , यदि तूं न होता तो मैं सत को कैसे जान सकता था ?

असत्य क्या है ? वह जो अपना रंग बदलता रहता है , जो द्वैत्य की ऊर्जा से होता है , जो कभी सुख तो कभी दुःख का अनुभव कराता है -- असत्य है ।
भोग असत्य है और योग से सत्य की पहचान होती है । भोग से भोग में हमारा अस्तित्व है - ऐसा हमें
लगता है लेकीन यह असत्य सत्य के ऊपर अपना स्थान बनाए हुए है -- यह बात हम नहीं जानते ।
असत्य की छाया में हम हैं और यह एक मौक़ा मिला हुआ है जिसके अनुभव से सत्य को समझा जा सकता है ।
सत्य क्या है ? यह बात सीधे तौर पर समझना संभव नहीं लेकीन असत्य को यदि समझा जा सके तो
सत्य को जानना कोई कठीन नहीं है --असत्य का होश ही सत है ।

====ॐ======

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