अब इसे भी समझो
गीता सूत्र - 3.27
करता भाव , अहंकार की छाया है ..... और ----
गीता सूत्र - 18.17
अहंकार से अछूता ब्यक्ति , अपनी बुद्धि एवं कर्मों का गुलाम नहीं होता .....
जहां - जहां मैं है समझना वहाँ - वहाँ अहंकार है । जहां - जहां अहंकार है वहाँ - वहाँ प्रभु की किरण नहीं
दिखती । प्रभु की किरण को देखनें की आँख तब मिलती है जब अहंकार पिघल कर श्रद्धा में रूपांतरित हो गया
होता है ।
प्रभु आगे कहते हैं --वह जो अहंकार के सम्मोहन से परे है उसको कर्म एवं उसकी बुद्धि गुलाम नहीं बना पाते ।
प्रभु यह भी कहते हैं ..... बुद्धि , मैं हूँ [ गीता - 7.10 ] ,फिर क्यों कह रहे हैं , अहंकार रहित ब्यक्ति बुद्धि का
गुलाम नहीं होता ? जबतक बुद्धि में संदेह है , जबतक बुद्धि गुणों के सम्मोहन में है , तब तक वह बुद्धि
प्रभु को धारण नहीं कर सकती ।
गीता सूत्र - 2.42 - 2.44 में प्रभु कहते हैं -----
भोग - भगवान् , दोनों एक साथ एक बुद्धि में नही समाते ।
निर्विकार मन - बुद्धि प्रभु के निवास हैं और
सविकार मन - बुद्धि भोग के घर हैं ।
मैं का एहसाश , अहंकार का संकेत है , और
कामना , क्रोध , लोभ , मोह , वासना के प्रतिबिम्ब हैं ॥
===== ॐ ======
Friday, September 3, 2010
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